आज की दुनिया में एयरक्राफ्ट मैन्युफैक्चरिंग की इंडस्ट्री में दो ही बड़ी कंपनियां, बोइंग और एयरबस, काबिज हैं। इनके अलावा कोई भी बड़ी कंपनी इस इंडस्ट्री में कदम नहीं रख पाई है। तो आखिर ऐसा क्यों है कि बोइंग और एयरबस के अलावा कोई अन्य कंपनी इस विशाल और उच्च-तकनीकी इंडस्ट्री में प्रवेश नहीं कर पाई है? और क्या भारत कभी एयरक्राफ्ट मैन्युफैक्चरिंग में अपनी जगह बना पाएगा? इस सवाल का जवाब जानने के लिए हम आपको इस लेख में पूरी जानकारी देंगे।
भारत और एयरक्राफ्ट मैन्युफैक्चरिंग: एक लंबा इतिहास
भारत में एयरक्राफ्ट मैन्युफैक्चरिंग का इतिहास बहुत पुराना है। 1980 के दशक से भारत छोटे एयरक्राफ्ट बनाने में लगा हुआ है, खासकर हेलीकॉप्टर और मिलिट्री एयरक्राफ्ट के लिए। लेकिन भारत की कोई भी कंपनी आज तक पैसेंजर एयरक्राफ्ट बनाने में सफल नहीं हो पाई। इसका मुख्य कारण है विवेचन मार्केट, जिसे बोइंग और एयरबस ने पूरी तरह से काबू कर लिया है। ये दोनों कंपनियां एयरक्राफ्ट मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री का 99% हिस्सा संभालती हैं और बाकी किसी को इस इंडस्ट्री में प्रवेश करने का मौका नहीं देतीं।
बोइंग और एयरबस का दबदबा
बोइंग और एयरबस के इस इंडस्ट्री में इतने बड़े हिस्से पर कब्जा करने का इतिहास बहुत पुराना है। 1916 में अमेरिका के विलियम बोइंग ने अपनी कंपनी की शुरुआत की, जिसके बाद उन्होंने अमेरिकी नेवी के लिए युद्ध में इस्तेमाल होने वाले विमान बनाने शुरू किए। इन कंपनियों को समय-समय पर अमेरिकी सरकार और यूरोपीय सरकारों से भारी समर्थन मिलता रहा है, जिससे इनका दबदबा दिन-ब-दिन बढ़ता गया।
क्यों बोइंग और एयरबस का प्रभाव इतना मजबूत है?
इन दोनों कंपनियों के पास न सिर्फ सरकारी समर्थन है, बल्कि फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन (FAA) और यूरोपीय एविएशन सेफ्टी एजेंसी (EASA) जैसे शक्तिशाली संगठन भी इनका समर्थन करते हैं। इन संस्थाओं की मदद से बोइंग और एयरबस किसी भी नए प्लेयर को इंडस्ट्री में दाखिल होने से रोकने में सफल होते हैं। अगर कोई नई कंपनी एयरक्राफ्ट बना भी ले, तो वह बिना सही गुणवत्ता और सेफ्टी सर्टिफिकेशन के इसे दुनिया भर में बेच नहीं सकती। और यही कारण है कि कोई भी नई कंपनी इस इंडस्ट्री में सफल नहीं हो पाती।
बंबार्डियर और अन्य कंपनियों का संघर्ष
कनाडा की कंपनी बंबार्डियर ने छोटे एयरक्राफ्ट की डिमांड को भांपते हुए छोटे विमान बनाना शुरू किया था। लेकिन बोइंग और एयरबस ने उनके खिलाफ गवर्नमेंट से शिकायत की, जिसके परिणामस्वरूप बंबार्डियर के विमान पर भारी टैक्स लगा दिया गया। इस टैक्स ने कंपनी के प्री-ऑर्डर को रद्द करवा दिया और उनकी स्थिति काफी कमजोर हो गई। इसी तरह की समस्याओं का सामना अन्य कंपनियों को भी करना पड़ा, जैसे कि चीन की एक एयरक्राफ्ट कंपनी, जिसे भी FAA से अप्रूवल नहीं मिला।
भारत क्यों नहीं बना सकता एयरक्राफ्ट?
भारत में एयरक्राफ्ट मैन्युफैक्चरिंग के लिए वित्तीय और तकनीकी दोनों तरह की बड़ी चुनौतियां हैं। एक छोटे पैसेंजर प्लेन को बनाने में 10 से 15 मिलियन डॉलर का खर्चा आता है, जो बिना सरकारी मदद के किसी भी कंपनी के लिए संभव नहीं है। भारत में हालांकि, विमानन इंडस्ट्री में कदम रखने की चर्चा हो रही है, लेकिन बिना सरकारी सहायता के इसे शुरू करना बहुत मुश्किल होगा। अगर भारत को इस इंडस्ट्री में सफलता प्राप्त करनी है, तो शुरुआत छोटे एयरक्राफ्ट से करनी चाहिए, क्योंकि आने वाले सालों में डोमेस्टिक एयरक्राफ्ट की डिमांड बढ़ने वाली है।
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निष्कर्ष
इस पूरी इंडस्ट्री पर बोइंग और एयरबस का दबदबा इतना मजबूत है कि कोई भी नई कंपनी इसके खिलाफ मुकाबला नहीं कर पाती। इन कंपनियों के पास न सिर्फ पैसे और संसाधन हैं, बल्कि सरकारों का पूरा समर्थन भी है, जो उन्हें इस फील्ड में और अधिक ताकतवर बनाता है। भारत के लिए इस इंडस्ट्री में कदम रखना बहुत कठिन है, लेकिन अगर इसे सही तरीके से शुरू किया जाए, तो आने वाले समय में यह संभव हो सकता है, खासकर छोटे एयरक्राफ्ट के निर्माण के साथ।
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