आज से 15 साल पहले, हीरो मोटोकॉर्प (Hero MotoCorp) भारतीय टू-व्हीलर मार्केट में एक बड़ा नाम था। यह वही कंपनी थी जो कभी हार्ले डेविडसन जैसी प्रीमियम बाइक्स का उत्पादन करने वाली कंपनी रही थी और जिसके पास दो वर्ल्ड-क्लास R&D सेंटर थे। लेकिन समय के साथ, हीरो अपने ही मार्केट शेयर को बनाए रखने में संघर्ष करने लगी। इसका कारण क्या था? क्या हीरो अब भी वही प्रतिष्ठित ब्रांड है जो एक समय टू-व्हीलर मार्केट पर राज करता था?
इस लेख में हम जानेंगे हीरो ग्रुप की शुरुआत से लेकर होंडा से अलग होने की कहानी, उनके परिवार में हुए विभाजन, और मौजूदा स्थिति को विस्तार से।
हीरो ग्रुप की शुरुआत: साइकिल से सफर की शुरुआत
हीरो ग्रुप की कहानी आज़ादी से पहले, 1944 में शुरू हुई थी। पंजाब के कमालिया गांव में चार भाई—ब्रजमोहन लाल मुंजाल, दयानंद मुंजाल, सत्यानंद मुंजाल और ओम प्रकाश मुंजाल—अपने पिता के साथ अनाज की ट्रेडिंग किया करते थे। देश का माहौल अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलनों से भरा हुआ था, जिससे परिवार को अपना गांव छोड़कर अमृतसर आना पड़ा।
चारों भाइयों के पास कोई औपचारिक डिग्री नहीं थी, लेकिन बिजनेस की गहरी समझ थी। उन्हें लगा कि आजादी के बाद साइकिल बिजनेस में भारी ग्रोथ होगी क्योंकि उस समय भारत में ज्यादातर साइकिलें विदेशों से आयात की जाती थीं और महंगी होती थीं। हालांकि, भारतीय कंपनियां भी थीं, लेकिन उनकी क्वालिटी अंतरराष्ट्रीय ब्रांड्स के मुकाबले कमजोर थी।
परिवार के पास ना तो फैक्ट्री खोलने के लिए टेक्नोलॉजी थी और ना ही पैसा। इसलिए उन्होंने साइकिल के पार्ट्स बनाने का फैसला किया। बिजनेस लाने की जिम्मेदारी ब्रजमोहन लाल मुंजाल को दी गई, जबकि अन्य भाइयों ने प्रोडक्शन और डिलीवरी का काम संभाला। धीरे-धीरे, उन्होंने लोकल सप्लायर्स और कारीगरों के साथ पार्ट्स की सप्लाई शुरू की।
इसी दौरान, ओम प्रकाश मुंजाल को पता चला कि उनके एक सप्लायर, जो साइकिल की सीटें बनाते थे, पाकिस्तान शिफ्ट होने वाले थे। ओम प्रकाश ने उनसे उनके ब्रांड का नाम लेने की इजाजत मांगी, और वे तुरंत तैयार हो गए। यह ब्रांड नाम था “हीरो”, और यहीं से हीरो ग्रुप की असली शुरुआत हुई।
हीरो की ग्रोथ: एक साधारण ब्रांड से लीडर बनने तक
साल 1954 में, हीरो को एटलस साइकिल्स से एक डील मिली, जिसमें उन्हें साइकिल का “फ्रेम फोर्क” बनाने का ऑर्डर मिला। पहले प्रयास में उनका डिज़ाइन कमजोर निकला और पूरे माल को वापस कर दिया गया। लेकिन मुंजाल ब्रदर्स ने हार नहीं मानी और मजबूत क्वालिटी के साथ नए डिजाइन बनाए, जिससे उन्हें साइकिल के अन्य पार्ट्स के भी ऑर्डर मिलने लगे।
1956 में, लुधियाना में अपनी फैक्ट्री से उन्होंने पहली बार हीरो साइकिल लॉन्च की। यह देखने में विदेशी ब्रांड्स जैसी नहीं थी, लेकिन मजबूत और आरामदायक थी। किसानों, दूध वालों और नौकरीपेशा लोगों के लिए यह एक भरोसेमंद विकल्प बन गई। 1986 तक, हीरो दुनिया की सबसे बड़ी साइकिल निर्माता कंपनी बन चुकी थी।
हीरो का टू-व्हीलर मार्केट में प्रवेश
1970 के दशक के अंत तक, भारत में स्कूटर और मोपेड की मांग बढ़ने लगी थी। पहले हीरो ने फ्रेंच कंपनी Peugeot के साथ साझेदारी करने की कोशिश की, लेकिन यह सफल नहीं हुई। फिर, 1978 में, हीरो मैजेस्टिक मोपेड लॉन्च किया गया, जिसने जबरदस्त सफलता पाई। हीरो के मोपेड्स, पेसर और पैंथर, इतने लोकप्रिय हुए कि कुछ ही सालों में 35% मार्केट पर हीरो का कब्जा हो गया।
हीरो ग्रुप ने बिजनेस को आगे बढ़ाने के लिए ऑस्ट्रिया की कंपनी Puch के साथ पार्टनरशिप कर ली। इससे कंपनी का विस्तार हुआ, और अब वे टू-व्हीलर मार्केट के किंग बन चुके थे।
हीरो और होंडा की ऐतिहासिक पार्टनरशिप
1980 के दशक में, भारतीय ग्राहक अब स्कूटर और मोपेड से हटकर किफायती और बेहतर माइलेज वाली 100cc बाइक्स की ओर आकर्षित हो रहे थे। इसी दौरान, जापानी ऑटोमोबाइल कंपनी Honda ने भारत में एंट्री करने का फैसला किया।
हीरो और होंडा के बीच 1984 में एक ऐतिहासिक करार हुआ, और Hero Honda की स्थापना हुई। यह पार्टनरशिप भारतीय ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में गेम चेंजर साबित हुई। हीरो को होंडा से इंजन और टेक्नोलॉजी मिली, जिससे कंपनी ने बेहतरीन माइलेज देने वाली बाइक्स बनानी शुरू कर दीं। “Fill it, shut it, forget it” टैगलाइन के साथ लॉन्च हुई Hero Honda CD 100 ने भारतीय बाजार में धूम मचा दी।
हीरो और होंडा का अलग होना
2000 के दशक में, हीरो और होंडा के बीच मतभेद बढ़ने लगे। होंडा ने भारतीय बाजार में खुद की पहचान बनाने के लिए नए कदम उठाने शुरू कर दिए। 2010 तक आते-आते, दोनों कंपनियों के रास्ते अलग हो गए और हीरो मोटोकॉर्प अस्तित्व में आया।
हीरो के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी—अपने खुद के इंजन बनाना। पहले वे होंडा के इंजन पर निर्भर थे, लेकिन अब उन्हें अपनी खुद की टेक्नोलॉजी विकसित करनी थी। हालांकि, हीरो ने इस चुनौती को स्वीकार किया और नई टेक्नोलॉजी विकसित करके दिखाया कि वे वास्तव में “हीरो” हैं।
आज का हीरो मोटोकॉर्प: चुनौतियां और भविष्य
हीरो मोटोकॉर्प ने होंडा से अलग होने के बाद भी भारतीय बाजार में अपनी पकड़ बनाए रखी है। हालांकि, अब उन्हें टीवीएस, बजाज और खासतौर पर होंडा से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है।
कंपनी ने इलेक्ट्रिक टू-व्हीलर सेगमेंट में भी एंट्री की है, लेकिन यहां भी उसे ओला, एथर और टीवीएस जैसी कंपनियों से मुकाबला करना पड़ रहा है।
हीरो की पहचान अब भी “किफायती और भरोसेमंद” बाइक्स के रूप में बनी हुई है। कंपनी की सबसे ज्यादा बिकने वाली बाइक्स, जैसे Splendor और HF Deluxe, अब भी भारत में सबसे ज्यादा पसंद की जाती हैं।
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निष्कर्ष
हीरो मोटोकॉर्प की कहानी भारतीय उद्योग जगत में संघर्ष, सफलता और नवाचार का बेहतरीन उदाहरण है। साइकिल से लेकर मोटरसाइकिल और फिर इलेक्ट्रिक सेगमेंट तक, हीरो ने हर चुनौती का सामना किया और खुद को साबित किया।
अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या हीरो इलेक्ट्रिक और प्रीमियम बाइक सेगमेंट में भी वही सफलता हासिल कर पाएगा जो उसने कम्यूटर बाइक सेगमेंट में की थी?