डाबर: एक छोटे वैद्य से लेकर FMCG दिग्गज बनने की कहानी

जब भी आप आयुर्वेदिक प्रोडक्ट्स की बात करते हैं, तो डाबर का नाम सबसे पहले दिमाग में आता है। क्या आपने कभी सोचा है कि यह ब्रांड जो कभी एक साइकिल पर घूमने वाले वैद्य से शुरू हुआ था, आज भारत के सबसे बड़े FMCG ब्रांड्स में से एक कैसे बना? आइए जानते हैं डाबर की सफलता की पूरी कहानी।

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शुरुआत: एक साइकिल और आयुर्वेदिक दवाएं

1880 के दशक में जब पूरे भारत में हैजा, मलेरिया और प्लेग जैसी बीमारियां फैली थीं, तब कोलकाता के एक आयुर्वेदिक वैद्य डॉ. एस. के. बर्मन ने कुछ जड़ी-बूटियों से सस्ती और असरदार दवाएं तैयार कीं। धीरे-धीरे उनकी दवाएं इतनी लोकप्रिय हो गईं कि दूर-दराज के गांवों में भी लोग इन्हें मांगने लगे। वे साइकिल से घूम-घूमकर मरीजों को दवाएं बांटते थे और आयुर्वेद के ज्ञान को बढ़ावा देते थे।


पहली फैक्ट्री और डाबर ब्रांड की शुरुआत

1900 के दशक की शुरुआत में डॉ. बर्मन ने महसूस किया कि उनकी दवाओं की मांग तेजी से बढ़ रही है। 1884 में उन्होंने अपनी पहली फैक्ट्री स्थापित की और बड़े पैमाने पर दवाओं का उत्पादन शुरू किया। यहीं से डाबर ब्रांड की नींव पड़ी। लेकिन 1907 में डॉ. बर्मन के निधन के बाद उनके बेटे सी. एल. बर्मन ने बिजनेस की कमान संभाली और कोलकाता में एक R&D सेंटर शुरू किया ताकि नए उत्पादों पर रिसर्च की जा सके।


डाबर का विस्तार और नई कैटेगरी में एंट्री

डाबर की शुरुआत आयुर्वेदिक दवाओं से हुई थी, लेकिन कंपनी ने धीरे-धीरे अपने प्रोडक्ट्स का दायरा बढ़ाया।

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  • 1940 में डाबर आंवला हेयर ऑयल लॉन्च किया गया।
  • 1949 में डाबर च्यवनप्राश आया, जो आज भी इम्यूनिटी के लिए सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है।
  • 1970 में डाबर लाल दंत मंजन लॉन्च हुआ, जिसने मार्केट में धूम मचा दी।

1978-79 में हाजमोला आई, जिसने डाइजेस्टिव टैबलेट के मार्केट में तहलका मचा दिया। आज भी हाजमोला भारतीय बाजार के 50% से ज्यादा हिस्से पर कब्जा किए हुए है।


डाबर का आईपीओ और आधुनिक बिजनेस मॉडल

1994 में डाबर ने शेयर बाजार में कदम रखा और IPO लॉन्च किया, जिसे 21 गुना ज्यादा सब्सक्राइब किया गया। इससे कंपनी को नई ऊंचाइयों तक पहुंचने में मदद मिली।

1997 में डाबर ने फूड सेगमेंट में एंट्री की और रियल फ्रूट जूस लॉन्च किया, जो भारत का पहला पैक्ड फ्रूट जूस ब्रांड बना। इसके बाद कंपनी ने पर्सनल केयर, हेल्थकेयर और फूड सेक्टर में अपनी मजबूत पकड़ बना ली।


ब्रांडिंग और मार्केटिंग में बढ़त

डाबर को हमेशा से पता था कि एक सफल ब्रांड बनने के लिए अच्छी मार्केटिंग जरूरी है। 90s के दशक में डाबर के कई विज्ञापन काफी फेमस हुए, जैसे “मास्टर जी” वाला लाल दंत मंजन ऐड, हाजमोला सर और डाबर आंवला तेल का ऐड, जिसने इस ब्रांड को हर घर तक पहुंचा दिया।


क्या पतंजलि ने डाबर को नुकसान पहुंचाया?

जब बाबा रामदेव की पतंजलि मार्केट में आई, तो कई लोगों को लगा कि इससे डाबर की सेल्स पर असर पड़ेगा। लेकिन डाबर सिर्फ आयुर्वेदिक दवाओं तक सीमित नहीं था। यह पहले ही पर्सनल केयर, फूड और हेल्थकेयर जैसे कई सेक्टर्स में अपनी जगह बना चुका था।

डाबर के कुछ लोकप्रिय ब्रांड्स में रियल जूस, बादशाह मसाला, एवरेडी इंडस्ट्रीज, अवीवा लाइफ इंश्योरेंस और रेली केयर एंटरप्राइजेज शामिल हैं।

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आज का डाबर: एक ग्लोबल FMCG दिग्गज

आज डाबर सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि यह 100 से ज्यादा देशों में अपने प्रोडक्ट्स बेच रहा है। यह एक 1 अरब डॉलर से ज्यादा की कंपनी बन चुकी है।

डाबर की कहानी सिर्फ एक ब्रांड की ग्रोथ की नहीं, बल्कि एक विजन की भी है। यह वही विजन है जिसने आयुर्वेद को घर-घर तक पहुंचाया और एक छोटे से वैद्य के आइडिया को 140 साल पुराने ग्लोबल ब्रांड में बदल दिया। 🚀

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