जब भी हम चिप्स के बारे में सोचते हैं, हमारे दिमाग में सबसे पहले लेज़, अंकल चिप्स और हल्दीराम जैसे बड़े ब्रांड्स का नाम आता है। लेकिन अगर आप भारत के पश्चिमी राज्यों से हैं, तो आपने बालाजी वेफर्स का नाम जरूर सुना होगा। गुजरात से शुरू हुआ यह लोकल ब्रांड आज भारत के स्नैक्स मार्केट में दिग्गज कंपनियों को टक्कर दे रहा है। 2023 में इसका सालाना रेवेन्यू 5500 करोड़ रुपये था, जो इसे लेज़ के बाद भारत का दूसरा सबसे बड़ा चिप्स ब्रांड बनाता है।
शुरुआत: जब सपनों की नींव रखी गई
बालाजी वेफर्स की कहानी शुरू होती है चंदूभाई वीरानी से, जो गुजरात के धुंधला गांव में रहते थे। उनके पिता किसान थे, लेकिन लगातार सूखे के कारण खेती से घर चलाना मुश्किल हो गया था। मजबूरन, उन्होंने अपनी पुश्तैनी जमीन बेचकर 20,000 रुपये अपने बेटों को दे दिए, ताकि वे अपने भविष्य के लिए कुछ बड़ा कर सकें।
राजकोट आकर चंदूभाई और उनके भाइयों ने फर्टिलाइज़र का बिजनेस शुरू किया, लेकिन जल्द ही वे ठगी के शिकार हो गए और पूरा पैसा डूब गया। हार मानने की बजाय, चंदूभाई ने एक सिनेमा हॉल में गेटकीपर की नौकरी कर ली, जहां उन्हें मात्र 90 रुपये महीने मिलते थे। मेहनती स्वभाव के कारण उन्होंने धीरे-धीरे कैंटीन का पूरा काम संभाल लिया और यहीं से उनके चिप्स बनाने के सफर की शुरुआत हुई।
बालाजी वेफर्स की नींव
कैंटीन में चिप्स की सप्लाई करने वाले वेंडर्स हमेशा लेट डिलीवरी करते थे, जिससे कैंटीन के बिजनेस पर असर पड़ रहा था। इस समस्या का हल निकालते हुए चंदूभाई ने खुद ही चिप्स बनाने का फैसला किया। अपनी 10,000 रुपये की बचत से उन्होंने घर के वरांडे में चिप्स बनाने का छोटा-सा सेटअप खड़ा किया। उनके चिप्स की क्वालिटी इतनी अच्छी थी कि जल्द ही वे राजकोट के 25-30 लोकल दुकानदारों तक पहुंच गए। 1981 में उन्होंने अपने ब्रांड का नाम ‘बालाजी वेफर्स’ रखा, जो पास के हनुमान मंदिर से प्रेरित था।
मुश्किलें और इनोवेशन
जल्द ही चंदूभाई को अहसास हुआ कि बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए उन्हें बड़े पैमाने पर उत्पादन करना होगा। लेकिन हाथ से बने चिप्स की क्वालिटी और कंसिस्टेंसी में अंतर आ रहा था। उन्होंने एक ऑटोमेटेड मशीन खरीदने की कोशिश की, लेकिन वह बेहद महंगी थी। हार न मानते हुए, उन्होंने 5 लाख रुपये की शुरुआती इन्वेस्टमेंट के साथ अपनी पहली फैक्ट्री लगाई, जो उस समय गुजरात का सबसे बड़ा पोटैटो वेफर प्लांट था।
बालाजी की लोकप्रियता बढ़ती गई और 2014 तक यह इतना बड़ा हो गया कि एक प्रमुख स्नैक्स कंपनी ने इसे 2000 करोड़ रुपये में खरीदने का ऑफर दिया। लेकिन चंदूभाई ने इसे ठुकरा दिया, क्योंकि उनके लिए यह कंपनी किसी बेटे-बेटी से कम नहीं थी।
कानूनी चुनौतियाँ और बालाजी की दृढ़ता
बालाजी की बढ़ती लोकप्रियता से उसके प्रतिद्वंद्वियों को खतरा महसूस हुआ। 2017 में, पेप्सिको ने बालाजी वेफर्स पर डिज़ाइन कॉपी करने का केस कर दिया। कोर्ट का फैसला पेप्सिको के पक्ष में गया, और बालाजी को अपनी पैकेजिंग बदलनी पड़ी। लेकिन इस बदलाव का उनके ब्रांड पर कोई नकारात्मक असर नहीं पड़ा। लोग बालाजी को उसके पैकेज से नहीं, बल्कि उसकी गुणवत्ता से पहचानते थे। नतीजतन, आज भी इसका मार्केट शेयर हर साल 20-25% की दर से बढ़ रहा है, जबकि लेज़ का शेयर गिर रहा है।
बालाजी की सफलता के पीछे की रणनीतियाँ
1. प्रोडक्ट डाइवर्सिफिकेशन और इनोवेशन
बालाजी ने हमेशा नए और अनोखे फ्लेवर्स पर फोकस किया। वे हर क्षेत्र के हिसाब से लोकल टेस्ट को ध्यान में रखते हुए नए प्रोडक्ट लाते रहे, जैसे कि:
- राजस्थान के लिए – तीखे पिरी-पिरी वेफर्स
- गुजरात के लिए – पारंपरिक गाठी
- महाराष्ट्र के लिए – चाट चस्का
आज, बालाजी 50 से अधिक फ्लेवर्स में स्नैक्स बनाता है, जिसमें बेक्ड वेफर्स और हेल्दी स्नैक्स भी शामिल हैं।
2. नई मार्केट्स में एक्सपेंशन
बालाजी ने पहले गुजरात में मजबूत पकड़ बनाई, फिर राजस्थान, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में विस्तार किया। जब 2014 में उन्होंने पैन इंडिया मार्केट में कदम रखा, तो उन्होंने सीधे मेट्रो सिटीज़ पर फोकस करने के बजाय टियर-3 और रूरल एरियाज में विस्तार किया, जहाँ प्रतिस्पर्धा कम थी।
3. टेक्नोलॉजी में इन्वेस्टमेंट
बालाजी ने 1995 में पूरी तरह ऑटोमेटेड मैन्युफैक्चरिंग प्लांट सेट किया, जिससे उनकी चिप्स की क्वालिटी और प्रोडक्शन कैपेसिटी कई गुना बढ़ गई। आज उनके चार बड़े मैन्युफैक्चरिंग प्लांट हैं – राजकोट, वलसाड, वडोदरा और इंदौर। ये प्लांट हर दिन 100 क्विंटल पोटैटो वेफर्स और 5000 क्विंटल स्नैक्स प्रोड्यूस करते हैं।
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4. कस्टमर सैटिस्फैक्शन पर फोकस
बालाजी अपने कस्टमर्स को हमेशा किफायती दाम में ज्यादा क्वांटिटी और बेहतर क्वालिटी देने के लिए जाना जाता है। उदाहरण के लिए, वे सिर्फ ₹10 के पैकेट पर ₹1 का मार्जिन रखते हैं, ताकि प्रोडक्ट ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंच सके।
निष्कर्ष
बालाजी वेफर्स की कहानी मेहनत, लगन और सही बिजनेस रणनीतियों का बेहतरीन उदाहरण है। चंदूभाई वीरानी ने शून्य से शुरुआत की और आज उनकी कंपनी भारत की दूसरी सबसे बड़ी चिप्स ब्रांड बन चुकी है। चाहे कानूनी चुनौतियाँ हों, बड़े ब्रांड्स से प्रतिस्पर्धा हो, या मार्केट में अपनी अलग पहचान बनाने की जरूरत – बालाजी वेफर्स हर मोर्चे पर डटा रहा।