जब देश पर संकट हो, तब सियासत को पीछे छोड़कर एकजुट होना ही असली देशभक्ति होती है। भारत की राजनीति में जब अक्सर जाति, धर्म और विचारधाराओं की दीवारें खड़ी नजर आती हैं, ऐसे वक्त में कुछ नेता ऐसे भी सामने आए जिन्होंने बता दिया कि तिरंगे से बड़ा कुछ नहीं होता। Operation Sindoor के दौरान असदुद्दीन ओवैसी, उमर अब्दुल्ला और शशि थरूर ने जो बयान दिए, उन्होंने न सिर्फ देश का हौसला बढ़ाया, बल्कि ये भी साबित किया कि सच्चा नेता वही है जो संकट के समय अपने देश के साथ खड़ा होता है।
लोकतंत्र और एकजुटता का असली मतलब
लोकतंत्र का मतलब केवल सवाल पूछना नहीं, बल्कि जब देश पर खतरा हो, तब देश के साथ खड़ा होना भी है। सरहदों पर जब बारूद की गंध आती है, तब यह समय सवालों का नहीं, तिरंगे की छांव में एकजुटता दिखाने का होता है। असदुद्दीन ओवैसी, उमर अब्दुल्ला और शशि थरूर ने यही किया। उन्होंने यह साबित किया कि सियासत का वक्त बाद में आता है, पहले भारत आता है।
असदुद्दीन ओवैसी: मुस्लिम नहीं, भारतीय पहले
ओवैसी को अक्सर कट्टर राजनीति से जोड़ा जाता है, लेकिन इस बार उन्होंने जो कहा, वो हर भारतीय के दिल को छू गया। पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद उन्होंने खुलकर पाकिस्तान को लताड़ा। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान की ज़मीन आतंकवाद की फैक्ट्री बन चुकी है, और भारत को शांति से नहीं बल्कि सख्ती से जवाब देना चाहिए।
उन्होंने कहा कि भारत का मुसलमान सच्चा सिपाही है। पाकिस्तान से हमें वफादारी का सर्टिफिकेट नहीं चाहिए। टर्की, अमेरिका और IMF पर उन्होंने सवाल उठाए कि वो आतंक फैलाने वाले देश को आर्थिक मदद क्यों देते हैं। यहां तक कि पाकिस्तान के ऑपरेशन ‘बुनियान अल मसरूस’ को भी उन्होंने ढोंग बताया और कहा कि इस्लाम के नाम पर आतंक फैलाने वालों को इस्लाम की बात करने का हक नहीं।
ओवैसी ने मुसलमानों से भी कहा कि अगर जिहाद करना है तो आतंक के खिलाफ करो। उन्होंने 23 करोड़ भारतीय मुसलमानों को यह यकीन दिलाया कि वो इस देश की शान हैं। यह देश उनका है, और उन्हें किसी को सफाई देने की जरूरत नहीं।
उमर अब्दुल्ला: कश्मीर की आवाज, भारत के साथ
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी ऐसे समय पर मजबूत और संतुलित बयान दिया। उन्होंने पाकिस्तान को साफ शब्दों में कहा कि कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है। उन्होंने बताया कि अगर पाकिस्तान वाकई शांति चाहता है, तो उसे सबसे पहले आतंकवाद पर लगाम लगानी होगी।
उन्होंने डोनाल्ड ट्रंप के कश्मीर पर दिए गए बयान पर दो टूक कहा कि कश्मीर भारत का आंतरिक मामला है, इसमें किसी बाहरी ताकत का दखल मंजूर नहीं। उनकी यह बात न सिर्फ पाकिस्तान बल्कि दुनिया को भी एक सशक्त संदेश था। उमर ने यह भी कहा कि कश्मीर के लोग शांति चाहते हैं, डर में नहीं जीना चाहते। उनकी बातों से कश्मीरियों को भरोसा मिला कि वो अकेले नहीं हैं।
शशि थरूर: अंग्रेज़ी नहीं, देशभक्ति की जुबान
शशि थरूर का नाम आते ही उनकी शानदार अंग्रेजी की तारीफ होती है, लेकिन इस बार उन्होंने जो कहा, वो भाषा से परे था। उन्होंने दुनिया के मंच पर भारत की छवि को मजबूती से पेश किया। उन्होंने यह दिखाया कि कांग्रेस का नेता होते हुए भी जब बात देश की हो, तो राजनीतिक मतभेद कोई मायने नहीं रखते।
उनके भाषण ने भारत की तरफ दुनिया की नजर को बदला और बताया कि भारत केवल एक भू-भाग नहीं, बल्कि एक विचार है – जो लोकतंत्र, एकता और शक्ति में विश्वास रखता है।
एक साथ उठती आवाजें, एक भारत का संदेश
इन तीन नेताओं की बातें भारत के हर कोने में गूंज उठीं। ओवैसी की दमदार हुंकार, उमर की संयमित लेकिन सटीक बातें और थरूर की वैश्विक मंच से उठी देशभक्ति की आवाज – तीनों ने मिलकर यह साबित किया कि देश के लिए सच्चा प्रेम किसी पार्टी, मजहब या विचारधारा से ऊपर होता है।
आज के युवाओं को इन नेताओं से यह सीख मिलती है कि भारतीय मुसलमानों को किसी सफाई की जरूरत नहीं। जब देश पुकारता है, तो हम सब एक साथ खड़े होते हैं – ओवैसी, उमर और थरूर की तरह।
निष्कर्ष: नेताओं से उम्मीद जगती है
इस समय जब राजनीति अक्सर बंटवारे का कारण बनती है, इन तीन नेताओं ने हमें यह यकीन दिलाया कि जब भारत की बात होती है, तब हर दीवार गिर जाती है। Operation Sindoor जैसे मौकों पर अगर देश की एकता की बात करनी हो, तो इन तीनों की बातें मिसाल बन जाती हैं। ओवैसी, उमर और थरूर जैसे नेता हमें याद दिलाते हैं कि हम पहले भारतीय हैं, बाकी सब बाद में।
भारत सबसे पहले। जय हिंद। 🇮🇳