BSNL: भारत का कभी शीर्ष पर रहने वाला टेलीकॉम, आज संघर्षरत क्यों?

दोस्तों, आज से करीब दो दशक पहले, जब भारत का टेलीकॉम सेक्टर उभर रहा था, BSNL का नाम सबसे ऊपर था। लेकिन समय के साथ, यह कंपनी अपने पहले पायदान से फिसलकर आज छठे स्थान पर आ गई है। ऐसा क्यों हुआ? क्या सरकारी नीतियां, अंदरूनी घोटाले, या निजी कंपनियों की प्रतिस्पर्धा इसके लिए जिम्मेदार हैं? आइए, इस पूरे सफर को विस्तार से समझते हैं।

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BSNL की शुरुआत और सुनहरा दौर

BSNL की कहानी 1851 से शुरू होती है, जब भारत में अंग्रेजों ने टेलीग्राफ सेवा शुरू की थी। आजादी के बाद, यह जिम्मेदारी भारत सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकम्युनिकेशन (DOT) के पास आ गई। 1999 में DOT को दो हिस्सों में बांट दिया गया—DTS (Department of Telecom Services) और DOT। DTS का नाम बदलकर 1 अक्टूबर 2000 को BSNL कर दिया गया।

शुरुआती दौर में BSNL ने जबरदस्त ग्रोथ देखी। 2006-07 तक इसका मार्केट शेयर 31% तक पहुंच गया था। इस दौरान, कंपनी ने 10,133 करोड़ रुपये का मुनाफा कमाया और करोड़ों ग्राहक इससे जुड़े। भारत को डिजिटल रूप से जोड़ने में BSNL की भूमिका महत्वपूर्ण रही।


घोटाले और गिरावट की शुरुआत

लेकिन 2004 से BSNL के अंदर समस्याएं शुरू हो गईं। टेलीफोन एक्सचेंज स्कैम और 2G घोटाले ने कंपनी को भारी नुकसान पहुंचाया।

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  • टेलीफोन एक्सचेंज स्कैम (2004): इसमें तत्कालीन केंद्रीय मंत्री दयानिधि मारन ने सरकारी टेलीफोन लाइनों का इस्तेमाल अपने पारिवारिक व्यवसाय के लिए किया, जिससे BSNL को करीब 1.78 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।
  • 2G स्पेक्ट्रम घोटाला (2008): यह भारत का सबसे बड़ा घोटाला था, जिसमें स्पेक्ट्रम लाइसेंस कम कीमत पर दिए गए। BSNL की परियोजनाएं और ऑपरेशंस धीमे पड़ गए, जिससे कंपनी को भारी नुकसान हुआ।

2010 के बाद BSNL की चुनौतियां

2010 के बाद, भारत का टेलीकॉम सेक्टर तेजी से बढ़ने लगा। निजी कंपनियों ने अपने इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत कर, आकर्षक योजनाएं लाकर, और 4G तकनीक में निवेश करके बाजार पर कब्जा कर लिया। वहीं BSNL 3G तकनीक तक ही सीमित रहा।

2016 में Jio का आगमन ने टेलीकॉम सेक्टर को बदलकर रख दिया। Jio ने फ्री डेटा और कॉलिंग ऑफर्स देकर करोड़ों ग्राहकों को आकर्षित किया। जहां Airtel और Vodafone ने तुरंत 4G पर स्विच किया, वहीं BSNL 4G में देरी करता रहा।


सरकारी नीतियों और अंदरूनी समस्याओं का असर

BSNL के पतन का एक मुख्य कारण सरकारी नीतियों और अंदरूनी ढांचागत समस्याओं को माना जा सकता है:

  1. सरकारी उदासीनता: जब टेलीकॉम सेक्टर में क्रांति हो रही थी, तब BSNL को समय पर नई तकनीक अपनाने का मौका नहीं मिला।
  2. सुस्त फैसले: कंपनी में फैसले लेने में देरी और नौकरशाही अड़चनों ने इसे और पीछे कर दिया।
  3. खराब कस्टमर सर्विस: BSNL की सेवाओं में गिरावट और कमजोर नेटवर्क कवरेज ने ग्राहकों को दूसरी कंपनियों की ओर मोड़ दिया।

BSNL के पुनरुत्थान की कोशिशें

हालांकि, सरकार ने BSNL को बचाने के लिए कई कदम उठाए।

  • 2021 में 69,000 करोड़ रुपये का पैकेज: यह राशि शॉर्ट-टर्म कर्ज चुकाने और सर्विस सुधारने में लगाई गई।
  • 2022 में 1.64 लाख करोड़ का पैकेज: फाइबर नेटवर्क विस्तार और सेवाओं को मजबूत करने के लिए।

लेकिन ये कदम भी पर्याप्त साबित नहीं हुए, क्योंकि BSNL की सेवाएं और छवि अभी भी कमजोर बनी हुई हैं।


क्या सोशल मीडिया ट्रेंड से BSNL को फायदा होगा?

हाल के दिनों में BSNL के समर्थन में सोशल मीडिया पर #BoycottPrivateOperators जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, कुछ क्षेत्रों में BSNL की सिम बिक्री में तीन गुना बढ़ोतरी हुई है। यह कंपनी के लिए एक उम्मीद की किरण हो सकती है, लेकिन इसके लिए BSNL को अपनी सेवाओं और तकनीकी ढांचे में बड़े बदलाव करने होंगे।

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निष्कर्ष

BSNL एक ऐसी कंपनी है, जिसने कभी भारतीय टेलीकॉम सेक्टर में राज किया था। लेकिन घोटालों, सरकारी नीतियों और प्रतिस्पर्धा की वजह से यह कंपनी पीछे रह गई। अगर BSNL अपने नेटवर्क को आधुनिक बनाकर और बेहतर कस्टमर सर्विस देकर आगे बढ़े, तो यह फिर से अपनी पुरानी जगह हासिल कर सकता है।

अस्वीकरण:

यह लेख केवल सूचना उद्देश्यों के लिए है। लेख में साझा की गई जानकारी लेखन के समय उपलब्ध सार्वजनिक स्रोतों और अनुसंधान पर आधारित है। इस लेख में व्यक्त विचार और राय केवल लेखक के हैं और यह किसी भी संगठन, कंपनी या व्यक्ति की आधिकारिक नीति या स्थिति को प्रतिबिंबित नहीं करते हैं। इस सामग्री का उद्देश्य विशिष्ट सलाह या समर्थन प्रदान करना नहीं है। किसी भी निर्णय या कार्रवाई से पहले, कृपया आधिकारिक और विश्वसनीय स्रोतों से जानकारी की पुष्टि करें। लेखक इस लेख में दी गई जानकारी में किसी भी त्रुटि, गलतफहमी या चूक के लिए जिम्मेदार नहीं है।

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