कैसे एक छोटे से गांव का लड़का बना भारत का सबसे बड़ा कॉफी किंग: वीजी सिद्धार्थ की कहानी

एक साधारण परिवार में जन्मा लड़का, जिसने कभी अपने पिता से कुछ पैसे उधार लेकर कॉफी का कारोबार शुरू किया, वह भारत की सबसे बड़ी कैफे चेन का संस्थापक बना। लेकिन सफलता के इस सफर का अंत दुखद हुआ। हम बात कर रहे हैं वीजी सिद्धार्थ की, जिन्होंने कैफे कॉफी डे (CCD) की शुरुआत की। आइए जानते हैं कि कैसे उन्होंने अपने मेहनत और विजन के दम पर भारत में कैफे कल्चर की शुरुआत की और फिर वही उनके जीवन का सबसे बड़ा संकट बन गया।

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कॉफी के बीच बसा बचपन

चिकमंगलूर, जहां कॉफी की खुशबू हर तरफ फैली होती है, वहीं से वीजी सिद्धार्थ की कहानी शुरू होती है। उनका परिवार करीब 150 सालों से कॉफी की खेती कर रहा था। 1956 में परिवार ने अपनी जमीन का बंटवारा किया, जिसमें उनके पिता को 479 एकड़ जमीन मिली। यहीं से उन्होंने कॉफी प्लांटेशन शुरू किया। सिद्धार्थ का बचपन इसी खेती के आसपास बीता, लेकिन उनका सपना भारतीय सेना में भर्ती होने का था। वह NCC में शामिल हुए और आर्मी में जाने की कोशिश की, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था।

शेयर मार्केट से कॉफी की दुनिया तक का सफर

आर्मी का सपना टूटने के बाद मुंबई गए और वहाँ JM Financial में काम करने लगे। शेयर मार्केट की बारीकियां सीखने के बाद, उन्होंने 1980 के दशक में कुछ बड़ा करने का फैसला लिया।

उन्होंने अपने पिता से 75 लाख रुपये उधार मांगे। उनके पिता ने शर्त रखी कि यदि वह असफल हुए तो वापस खेती में लौट आएंगे। इस पैसे से उन्होंने 5 लाख की जमीन खरीदी और बाकी शेयर मार्केट में निवेश कर दिया। कुछ ही सालों में उनकी संपत्ति 3000 एकड़ तक पहुँच गई।

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भारत में कैफे कल्चर की शुरुआत

1993 में भारत की अर्थव्यवस्था के दरवाजे खुल चुके थे और इंटरनेशनल ट्रेडिंग के मौके बढ़ रहे थे। सिद्धार्थ ने इस अवसर को पहचाना और कॉफी ट्रेडिंग में उतरने का फैसला लिया।

शुरुआती दौर में वह भारत के सबसे बड़े अनरोस्टेड कॉफी एक्सपोर्टर बन गए, लेकिन कॉफी की कीमतों में उतार-चढ़ाव ने उन्हें अहसास कराया कि सिर्फ एक्सपोर्ट से लंबा सफर तय नहीं किया जा सकता।

उन्होंने सोचा कि क्यों न कॉफी को एक ब्रांड बनाया जाए, जिससे यह भारत के लोगों तक पहुंचे। 1996 में उन्होंने कैफे कॉफी डे (CCD) की शुरुआत की और बेंगलुरु के ब्रिगेड रोड पर पहला कैफे खोला। यह सिर्फ एक कैफे नहीं था, बल्कि एक अनुभव था, जहाँ लोग कॉफी के साथ फ्री वाईफाई, आरामदायक माहौल और काम करने की सुविधा पा सकते थे।

CCD जल्द ही युवाओं और प्रोफेशनल्स के लिए मीटिंग और सोशलाइजिंग हब बन गया। 2000 तक सिर्फ साउथ इंडिया में 22 कैफे थे और 2004 तक यह संख्या 200 तक पहुँच गई। यह भारत में कैफे कल्चर की शुरुआत थी।

सफलता और संघर्ष

CCD की बढ़ती लोकप्रियता के साथ-साथ उन्होंने कॉर्पोरेट ऑफिस में वेंडिंग मशीन लगानी शुरू की, जिससे बिजनेस और बढ़ा। लेकिन वे सिर्फ कॉफी तक सीमित नहीं रहना चाहते थे। उन्होंने शेयर बाजार, रियल एस्टेट और अन्य बिजनेस में भी हाथ आजमाया।

हालांकि, यह विस्तार उनके लिए मुसीबत बन गया। कई निवेश और बिजनेस डील्स में उन्हें नुकसान हुआ, और कर्ज का दबाव बढ़ता गया।

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दुखद अंत

बिजनेस की बढ़ती चुनौतियों और कर्ज के बोझ ने उन्हें मानसिक रूप से परेशान कर दिया। 2019 में एक दिन वे अचानक गायब हो गए और बाद में उनका शव नदी के पास मिला। उनकी मौत ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया।

निष्कर्ष

वीजी सिद्धार्थ की कहानी हमें सिखाती है कि सफलता और संघर्ष एक साथ चलते हैं। उन्होंने भारत में कैफे कल्चर को स्थापित किया, लेकिन बिजनेस की चुनौतियों के कारण उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ा। उनकी यात्रा प्रेरणादायक भी है और एक सीख भी कि बिजनेस में वित्तीय प्रबंधन और मानसिक स्वास्थ्य को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।

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