ईस्ट इंडिया कंपनी का इतिहास: व्यापार से सत्ता तक का सफर

साल 1775, कोलकाता का मशहूर चौराहा। एक आदमी मचान पर खड़ा था, नीचे भीड़ उसकी ओर चौकन्नी नजरों से देख रही थी। यह कोई आम सजा नहीं थी, बल्कि एक ऐलान था—ईस्ट इंडिया कंपनी अब सिर्फ व्यापारिक संगठन नहीं, बल्कि भारत का शासक बन चुकी थी। व्यापार के इरादे से आई इस मामूली सी कंपनी ने धीरे-धीरे पूरे देश के संसाधनों और जनता पर कब्जा कर लिया।

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कंपनी की शुरुआत

ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना 31 दिसंबर 1600 को हुई। ब्रिटेन की रानी एलिजाबेथ I ने इसे रॉयल चार्टर जारी किया, जिससे कंपनी को भारत और दक्षिण एशिया में व्यापार के विशेष अधिकार मिले। यह कंपनी न केवल व्यापार कर सकती थी, बल्कि अपनी करेंसी छापने, सेना बनाने, और अपने कानून लागू करने की भी अनुमति थी।

शुरुआत में कंपनी मसालों के व्यापार के लिए इंडोनेशिया के मलकू द्वीप गई। लेकिन वहां के स्थानीय शासकों और डच व्यापारियों के दबदबे के कारण कंपनी को लौटना पड़ा। इसके बाद ब्रिटिश व्यापारियों ने भारत की ओर रुख किया, जहां मसालों और वस्त्रों के प्रचुर संसाधन थे।

भारत में पहली दस्तक

1608 में ईस्ट इंडिया कंपनी पहली बार गुजरात के सूरत पहुंची। यहां के मुगल साम्राज्य और पुर्तगालियों के मजबूत संबंधों के कारण कंपनी को व्यापार की अनुमति नहीं मिली। इसके बाद, कंपनी ने मुगल सम्राट जहांगीर से नजदीकी बढ़ाने की कोशिश की। 1615 में सर थॉमस रॉय को इंग्लैंड के राजा जेम्स I ने जहांगीर के दरबार में भेजा। रॉय ने जहांगीर को कीमती उपहार और एक शाही पत्र दिया, जिसमें व्यापारिक संबंधों की इच्छा जताई गई थी।

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जहांगीर को यह प्रस्ताव पसंद आया, और उन्होंने सूरत में कंपनी को एक फैक्ट्री खोलने की अनुमति दी। यह निर्णय भारतीय इतिहास की सबसे बड़ी गलतियों में से एक साबित हुआ।

व्यापार से सत्ता तक

धीरे-धीरे कंपनी ने भारत में अपनी पकड़ मजबूत करनी शुरू कर दी। उन्होंने भारतीय राजाओं और नवाबों के साथ समझौते किए और अपनी निजी सेना बनाई। प्लासी (1757) और बक्सर (1764) के युद्धों में जीत के बाद कंपनी ने बंगाल, बिहार, और उड़ीसा पर अधिकार कर लिया। अब यह केवल एक व्यापारिक संगठन नहीं, बल्कि एक संपूर्ण शासक बन चुकी थी।

कंपनी ने अपने शासन के दौरान भारतीय किसानों और व्यापारियों पर भारी कर लगाए। स्थानीय उद्योगों को नष्ट कर ब्रिटेन के उत्पादों को बढ़ावा दिया। इस दौरान कई भुखमरी और विद्रोह हुए, लेकिन कंपनी की क्रूरता जारी रही।

ईस्ट इंडिया कंपनी का पतन

इतने ताकतवर बनने के बाद भी कंपनी का पतन तय था। इसका मुख्य कारण था सत्ता और लालच। 1857 के भारतीय विद्रोह ने कंपनी की नींव हिला दी। इस विद्रोह के बाद ब्रिटिश सरकार ने कंपनी का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया।

आज की स्थिति

आज, ईस्ट इंडिया कंपनी एक छोटे व्यवसाय के रूप में इंग्लैंड में मौजूद है। हैरानी की बात यह है कि इसका मालिक एक भारतीय है। कभी दुनिया की सबसे ताकतवर कंपनी रही ईस्ट इंडिया कंपनी आज इतिहास के पन्नों में केवल एक सबक बनकर रह गई है।

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निष्कर्ष

ईस्ट इंडिया कंपनी का इतिहास हमें यह सिखाता है कि सत्ता और लालच किसी भी संगठन या व्यक्ति को बर्बाद कर सकता है। यह कहानी भारतीयों के लिए एक प्रेरणा है कि एकता और संघर्ष से किसी भी ताकतवर दुश्मन को हराया जा सकता है।

Disclaimer

यह लेख केवल जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें प्रस्तुत तथ्य ऐतिहासिक अनुसंधान और प्रमाणों पर आधारित हैं। किसी भी विवादित या संवेदनशील मुद्दे पर व्यक्तिगत राय या निष्कर्ष निकालने से पहले विस्तृत अध्ययन और विशेषज्ञ परामर्श की सलाह दी जाती है। लेख में दी गई जानकारी का उद्देश्य केवल जागरूकता बढ़ाना और विषय के प्रति रुचि पैदा करना है।

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