स्कॉट्स ग्रुप: एक भरोसेमंद नाम, जिसका सफर अब इतिहास बन चुका है

जब भी हम स्कॉट्स ग्रुप का नाम सुनते हैं, तो एक मजबूत और भरोसेमंद ट्रैक्टर की छवि हमारे दिमाग में उभरती है। लेकिन क्या आपको पता है कि एक समय ऐसा भी था जब स्कॉट्स ग्रुप की राजदूत मोटरसाइकिल ने रॉयल एनफील्ड की रातों की नींद उड़ा दी थी? इतना ही नहीं, Yamaha RX 100 की सफलता के पीछे भी स्कॉट्स ग्रुप का बड़ा हाथ था।

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आज स्कॉट्स ग्रुप भले ही जापानी कंपनी Kubota के नियंत्रण में चला गया हो, लेकिन कभी इस भारतीय कंपनी ने कृषि उपकरणों, ट्रैक्टर्स, टू-व्हीलर्स, रेलवे कोच और टेलीकॉम सेक्टर तक में अपना दबदबा कायम किया था। आइए जानते हैं इस दिग्गज कंपनी की शुरुआत, सफलता और फिर धीरे-धीरे बाजार से इसके गायब होने की पूरी कहानी।


हरप्रसाद नंदा: एक सपनों का सफर

स्कॉट्स ग्रुप की कहानी शुरू होती है साल 1917 में, जब हरप्रसाद नंदा का जन्म लाहौर (तत्कालीन भारत) में हुआ। उनके पिता की एक छोटी सी ट्रांसपोर्ट कंपनी थी, जिसका नाम था नंदा बस कंपनी। लेकिन उस समय भारत पर अंग्रेजों का राज था और स्थानीय व्यापारियों के लिए आगे बढ़ना बेहद मुश्किल था।

नंदा साहब बचपन से ही किसानों की दुर्दशा देखकर बड़े हुए और मन में ठान लिया कि वे खेती से जुड़े लोगों के लिए कुछ ऐसा करेंगे जिससे उनकी जिंदगी आसान हो जाए। इसी सोच के साथ साल 1944 में उन्होंने स्कॉट्स एजेंट्स लिमिटेड की स्थापना की, जो कृषि मशीनों और ट्रैक्टरों की डीलरशिप का काम करती थी।

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लेकिन उनकी असली परीक्षा तब शुरू हुई जब 1947 में भारत-पाकिस्तान विभाजन हुआ और उन्हें अपना सब कुछ छोड़कर भारत आना पड़ा। दिल्ली पहुंचने पर उनके पास सिर्फ ₹50,000 थे, लेकिन उनका इरादा मजबूत था।


कृषि से इंडस्ट्री तक का सफर

भारत आने के बाद, 1949 में स्कॉट्स ने मेसी फर्ग्यूसन के साथ साझेदारी की और ट्रैक्टरों की डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी बन गई। कुछ ही सालों में कंपनी मजबूत हुई और 1959 में स्कॉट्स लिमिटेड के रूप में इसे एक पब्लिक लिमिटेड कंपनी में बदल दिया गया।

1961 में हरियाणा के फरीदाबाद में पहली उत्पादन इकाई स्थापित हुई और स्कॉट्स ने पोलैंड की Ursus कंपनी के साथ मिलकर अपना पहला ट्रैक्टर लॉन्च किया। धीरे-धीरे कंपनी ने हार्वेस्टर्स, रोटावेटर्स और अन्य कृषि उपकरणों का निर्माण शुरू किया।

कृषि सेक्टर के बाद नंदा साहब ने इन्फ्रास्ट्रक्चर और रेलवे सेक्टर में भी कदम रखा। उन्होंने JCB जैसी दिग्गज कंपनियों के साथ साझेदारी की और क्रेन्स, फोर्कलिफ्ट और रेलवे कोच के निर्माण में उतर गए। जल्द ही स्कॉट्स ग्रुप भारतीय रेलवे का सबसे बड़ा पार्टनर बन गया।


राजदूत मोटरसाइकिल की कामयाबी

1960 के दशक में, हरप्रसाद नंदा को यह महसूस हुआ कि भारतीय बाजार में एक सस्ती और भरोसेमंद मोटरसाइकिल की भारी जरूरत है। उस समय बुलेट और एसडी जैसी बाइक्स आम आदमी के लिए बहुत महंगी थीं।

इसलिए स्कॉट्स ने पोलैंड की SHL कंपनी के साथ करार किया और भारत में राजदूत मोटरसाइकिल को लॉन्च किया। यह हल्की, किफायती और मजबूत बाइक थी, जिसने बहुत जल्द पूरे देश में धूम मचा दी।

राजदूत मोटरसाइकिल की सफलता के बाद, स्कॉट्स ने Yamaha के साथ पार्टनरशिप की और भारत में Yamaha RX 100 जैसी धाकड़ बाइक को लॉन्च किया, जिसने युवाओं को दीवाना बना दिया।


फाइनेंस और हेल्थकेयर में भी हाथ आजमाया

ट्रैक्टर और टू-व्हीलर के बाद, स्कॉट्स ने फाइनेंस और हेल्थकेयर सेक्टर में भी कदम रखा। स्कॉट्स फाइनेंस लिमिटेड (EFL) की शुरुआत हुई, जिससे लोगों को आसान फाइनेंस सुविधा मिलने लगी।

इसके अलावा, फरीदाबाद में स्कॉट्स हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर की स्थापना की गई, जिसे बाद में देश के बेहतरीन हॉस्पिटलों में गिना जाने लगा।


फिर क्या हुआ जो स्कॉट्स ग्रुप खत्म हो गया?

इतनी बड़ी सफलता के बावजूद, स्कॉट्स ग्रुप का धीरे-धीरे पतन शुरू हो गया। इसके पीछे कुछ अहम कारण थे—

  1. गलत बिजनेस फैसले – कंपनी ने कई सेक्टर्स में निवेश किया लेकिन उन्हें सही से मैनेज नहीं कर पाई।
  2. टू-व्हीलर मार्केट में गिरावट – राजदूत और Yamaha RX 100 जैसी बाइक्स के बाद स्कॉट्स नई बाइक्स नहीं ला पाया, जिससे बाजार में इसकी पकड़ कमजोर हो गई।
  3. इंटरनेशनल कंपनियों का बढ़ता दबदबा – जापानी और अन्य विदेशी कंपनियों की एंट्री के कारण स्कॉट्स की बिक्री घटने लगी।
  4. कर्ज और मैनेजमेंट प्रॉब्लम्स – बढ़ते कर्ज और मैनेजमेंट में अस्थिरता के चलते कंपनी को अपने कई बिजनेस बेचने पड़े।

आज स्कॉट्स ग्रुप कहां है?

आज स्कॉट्स ग्रुप का कंट्रोल जापानी कंपनी Kubota के हाथ में है और अब यह कंपनी मुख्य रूप से ट्रैक्टर और कृषि उपकरणों पर केंद्रित है।

कभी भारतीय बाजार में छाए रहने वाले राजदूत मोटरसाइकिल, स्कॉट्स फाइनेंस और स्कॉट्स हॉस्पिटल अब इतिहास बन चुके हैं।

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निष्कर्ष: एक सीख देने वाली कहानी

स्कॉट्स ग्रुप की कहानी हमें यह सिखाती है कि बिजनेस में सफलता मिलने के बाद भी सतर्क रहना जरूरी होता है। एक समय जिस कंपनी ने भारतीय किसानों और युवाओं की जरूरतों को समझा, वही कंपनी आगे चलकर अपनी रणनीतियों को अपडेट नहीं कर पाई और धीरे-धीरे बाजार से गायब हो गई।

हालांकि, इसका नाम आज भी भारतीय रेलवे और कृषि उपकरणों में जिंदा है, लेकिन यह सोचना दिलचस्प होगा कि अगर स्कॉट्स ग्रुप अपने टू-व्हीलर और टेलीकॉम बिजनेस को सही से संभाल पाता, तो शायद आज यह देश की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक होती।

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