जोमटो: एक ऐसा बिजनेस जो मुश्किलों से उभरा और अब प्रॉफिट की ओर बढ़ रहा है

जोमटो, एक ऐसी कंपनी जिसकी आज वैल्यूएशन 16.5 बिलियन डॉलर है, कभी एक ऐसी स्थिति में थी जहाँ उसके पास केवल 6 महीने तक ऑपरेशनल खर्च उठाने के लिए पैसे बच गए थे। कंपनी के शेयर प्राइस में भारी गिरावट आई थी, जो 150 रुपये से घटकर 40 रुपये पर पहुंच गया था। इसके साथ ही चाइना के साथ बॉर्डर तनाव और रशिया-यूक्रेन युद्ध ने कंपनी की मुश्किलें और बढ़ा दीं। निवेशक भी इस कंपनी से हाथ खींचने लगे थे, और कंपनी को लगातार घाटे का सामना करना पड़ा था। सोशल मीडिया पर जोमटो के बारे में हजारों मीम्स बने थे, क्योंकि जोमटो के बिजनेस ने कभी भी मुनाफा नहीं देखा था। लेकिन इस साल के पहले क्वार्टर में जोमटो ने पहली बार ₹1 करोड़ का मुनाफा कमाया है। सवाल ये उठता है कि जो कंपनी कभी बंद होने के कगार पर थी, वह अचानक कैसे इतनी प्रॉफिटेबल हो गई?

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जोमटो की शुरुआत और शुरुआती समस्याएं

जोमटो की शुरुआत 2008 में हुई थी, लेकिन 2015 से पहले यह एक फूड डिलीवरी प्लेटफॉर्म नहीं था। यह एक फूड डिस्कवरी प्लेटफॉर्म था, यानी अगर आपको किसी रेस्टोरेंट से खाना ऑर्डर करना था, तो आप जोमटो के जरिए रेस्टोरेंट्स को सर्च कर सकते थे। 2015 तक, इस प्लेटफॉर्म पर 22 देशों के 1.4 मिलियन रेस्टोरेंट्स की लिस्टिंग हो चुकी थी। यह नेटवर्क उसके लिए महत्वपूर्ण था, लेकिन असल वजह कुछ और ही थी। दरअसल, दीपेंद्र गोयल ने यह आइडिया स्विगी से लिया था। 2014 में स्विगी ने फूड डिलीवरी सर्विस शुरू की, और दीपेंद्र ने देखा कि स्विगी का तरीका जोमटो से कहीं ज्यादा आगे था। स्विगी डोर टू डोर फूड डिलीवरी का विकल्प दे रहा था, जबकि जोमटो सिर्फ रेस्टोरेंट्स का डेटा दिखा रहा था। 2015 में, जोमटो ने स्विगी के रास्ते पर चलते हुए फूड डिलीवरी सर्विस शुरू की।

जोमटो का आईपीओ और कोविड का असर

2016 में जोमटो ने ₹85 करोड़ का रेवेन्यू जनरेट किया, लेकिन भारत में उसी साल कंपनी का ₹2247 करोड़ का नेट लॉस हुआ। यह एक गंभीर स्थिति थी, लेकिन फिर कोविड-19 ने जोमटो की मुश्किलों को और बढ़ा दिया। कोरोना महामारी के दौरान, लोगों ने ऑनलाइन खाना ऑर्डर करना कम कर दिया था, जिससे जोमटो के बिजनेस में 90% की गिरावट आई थी। कंपनी के पास अब केवल 6 महीने तक सरवाइव करने लायक पैसे बच गए थे। तभी, चाइना के साथ बॉर्डर तनाव की वजह से जोमटो को और समस्याएं आईं। चाइनीज इन्वेस्टर एंट फाइनेंशियल ने 150 मिलियन डॉलर का निवेश करने से मना कर दिया, और इसके बाद जोमटो को अपने आईपीओ की तरफ रुख करना पड़ा। जुलाई 2021 में कंपनी ने अपना आईपीओ लॉन्च किया, और यह थोड़ा बेहतर हुआ।

जोमटो की ग्रोथ के नए कारण

कोविड-19 के बाद जब चीजें सामान्य हुईं, तो जोमटो को बड़े पैमाने पर ऑर्डर्स मिलने लगे। इसका सबसे बड़ा कारण था कि लोग अब बाहर का खाना ज्यादा ऑर्डर करने लगे थे। इसके अलावा, एक और बड़ा कारण था “डोर डस” नाम की अमेरिकी कंपनी का आईपीओ। इस कंपनी के शेयर प्राइस ने निवेशकों का विश्वास जगाया, और जोमटो के शेयर को भी एक नया जीवन मिला। जोमटो का आईपीओ 38 गुना ओवर सब्सक्राइब हुआ, और पहले ही दिन इसके शेयर प्राइस में 65% का उछाल आया।

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ब्लिंकड का अधिग्रहण और जोमटो की आगे की योजना

हालांकि, जोमटो की ग्रोथ के बाद भी समस्याएं आईं। रशिया-यूक्रेन युद्ध और स्विगी जैसे प्रतिस्पर्धी ने मार्केट में जोमटो की स्थिति को चुनौती दी। इसके बाद, जोमटो ने ब्लिंकड नामक कंपनी को अधिग्रहित करने का ऐलान किया, जिससे निवेशक नाराज हो गए। हालांकि, जोमटो का यह कदम एक दीर्घकालिक योजना का हिस्सा था। क्विक कॉमर्स एक तेजी से बढ़ता हुआ सेक्टर था, और ब्लिंकड में ग्रोथ की काफी संभावनाएं थीं।

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जोमटो का फोकस और नफे की ओर बढ़ता कदम

जोमटो ने 225 शहरों में अपने ऑपरेशंस को बंद कर दिया, ताकि वह उन क्षेत्रों पर अधिक फोकस कर सके, जहां से उसे सबसे ज्यादा प्रॉफिट मिल रहा था। इसके बाद, जोमटो ने अपनी workforce में 4% की कटौती की और कमीशन को 27% से बढ़ाकर 30% कर दिया। इससे कंपनी ने अपने ग्रॉस ऑर्डर वैल्यू को बढ़ाया, जो पहले से कहीं ज्यादा था।

जोमटो का यह कदम साबित करता है कि सही रणनीति, समय पर सही फैसले और एक मजबूत योजना के साथ कोई भी कंपनी मुश्किलों से बाहर आ सकती है और प्रॉफिट की ओर बढ़ सकती है।

Disclaimer

यह आर्टिकल जोमेटो के बारे में विभिन्न घटनाओं और उसके व्यापारिक सफर के बारे में जानकारी प्रदान करता है। सभी आंकड़े और जानकारी उनके वर्तमान स्रोतों से लिए गए हैं, और हम इसकी पूरी सटीकता की गारंटी नहीं दे सकते हैं। कृपया ध्यान दें कि बाजार की स्थिति, कंपनी के निर्णय और वित्तीय स्थिति समय के साथ बदल सकती है। इसलिए, इससे संबंधित निर्णय लेने से पहले अपने खुद के रिसर्च और विशेषज्ञ से परामर्श लें। इस लेख का उद्देश्य केवल जानकारी देना है, और इसे निवेश सलाह या किसी प्रकार की वित्तीय सलाह के रूप में न समझें।

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