भारत में सबसे ज्यादा कारें बेचने वाली कंपनियों में से एक, हुंडई, आज एक अंतरराष्ट्रीय नाम बन चुकी है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस कंपनी की नींव एक छोटे से कोरियाई लड़के ने रखी थी, जिसका नाम था चंद जो यंग? बचपन में इस लड़के ने अपनी ज़िंदगी के कठिन दिन बिताए थे और अपने सपनों को पूरा करने के लिए बहुत संघर्ष किया। यहां तक कि कई बार उसकी मेहनत पूरी तरह से नाकाम भी हुई, लेकिन वह हार मानने वाला नहीं था। आइए जानते हैं कैसे चंद जो यंग ने अपने संघर्षों से हुंडई जैसी बड़ी कंपनी बनाई और किस तरह उन्होंने अपने सपनों को साकार किया।
बचपन में गरीबी और संघर्ष
चंद जो यंग का जन्म 1915 में एक गरीब कोरियाई परिवार में हुआ था। उनके पिता किसान थे और दिन-रात खेतों में काम करके अपने परिवार का पेट पालते थे। चंद का सपना था कि वह पढ़-लिखकर एक टीचर बनें, लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि वह कभी अच्छे से पढ़ाई नहीं कर पाए। कई बार उन्हें भूखा सोना पड़ता था और उन्हें अपनी शिक्षा का सपना सिर्फ एक खूबसूरत ख्वाब सा लगता था।
संघर्ष का पहला दौर: घर छोड़ना
जब चंद को लगा कि उनका सपना कभी पूरा नहीं होगा, तो उन्होंने 16 साल की उम्र में घर छोड़ने का फैसला किया। 1932 में बिना किसी को बताए वह घर से भाग गए और पास के शहर में काम की तलाश में पहुंच गए। वहां उन्हें एक कंस्ट्रक्शन साइट पर मजदूरी मिल गई, हालांकि वेतन बहुत कम था, लेकिन फिर भी उन्होंने आत्मनिर्भर बनने की उम्मीद से काम किया।
लेकिन चंद का यह समय ज्यादा खुशहाल नहीं था, क्योंकि घर से भागने के बाद उनके माता-पिता पागलों की तरह उन्हें ढूंढ रहे थे। लगभग दो महीने बाद, जब उनके पिता उन्हें ढूंढते हुए पहुंचे, तो उन्हें समझा-बुझाकर घर वापस ले आए।
संघर्ष के बावजूद आगे बढ़ना
घर वापस लौटने के बाद चंद को फिर से पुराने कामों में लगा दिया गया। लेकिन उनका दिल नहीं लगता था, वह हमेशा कंस्ट्रक्शन साइट के कामों को ही याद करते थे। इससे प्रेरित होकर, 18 साल की उम्र में उन्होंने एक और बार घर छोड़ने का फैसला किया और इस बार सियोल (कोरिया की राजधानी) गए। यहां उन्होंने एक फैक्ट्री में काम किया और धीरे-धीरे अपनी मेहनत से सफलता की सीढ़ी चढ़ी।
कारोबार की शुरुआत: कुमल राइस स्टोर
1940 में उन्होंने अपनी पहली दुकान, कुमल राइस स्टोर, खोली। दुकान का नाम उन्होंने खुद के नाम पर रखा और अपनी मेहनत, ईमानदारी और कड़ी मेहनत से उसे चलाया। दुकान को इतनी सफलता मिली कि वह जल्द ही स्टोर के मालिक बन गए। लेकिन उनकी मेहनत के बावजूद, कोरिया में जापान का कब्जा हो गया और चंद की दुकान जापानी सेना द्वारा अधिग्रहित कर ली गई।
संघर्षों के बावजूद वापसी
कोरियाई युद्ध के दौरान उनका व्यवसाय बर्बाद हो गया और उन्हें मजबूरी में अपना घर छोड़कर अपने परिवार के साथ गांव लौटना पड़ा। लेकिन चंद जो यंग ने हार नहीं मानी। उनके पास थोड़ी सी बचत थी, जिससे उन्होंने 1946 में सियोल लौटकर एक नया कारोबार शुरू किया और इसका नाम रखा “हुंडई सर्विस”। उन्होंने जल्द ही अमेरिकी सेना से कई बड़े प्रोजेक्ट हासिल किए, जो उनके जीवन में बदलाव लेकर आए।
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हुंडई मोटर कंपनी की स्थापना
1950 के दशक में, जब कोरिया के इन्फ्रास्ट्रक्चर को फिर से बनाने की जरूरत थी, तब चंद ने इस मौके का फायदा उठाया। उन्होंने 1967 में “हुंडई मोटर कंपनी” की शुरुआत की और कुछ सालों बाद, फोर्ड के साथ साझेदारी की, जिसके परिणामस्वरूप हुंडई ने अपनी पहली कार, हुंडई कार्तिना, लॉन्च की। हालांकि शुरुआत में यह कार सफल नहीं रही, लेकिन चंद ने कभी हार नहीं मानी।
विपरीत परिस्थितियों में भी सफलता
1969 में, जब हुंडई का असेंबली प्लांट बाढ़ में डूब गया और पूरी कंपनी संकट में थी, तो चंद ने अपनी पूरी ताकत और दृढ़ संकल्प के साथ कंपनी को खड़ा किया। उन्होंने दुगने जोश से काम किया और 1970 के दशक में हुंडई मोटर कंपनी ने अपनी सफलता की कहानी लिखनी शुरू की।
आज हुंडई दुनिया की सबसे बड़ी कार कंपनियों में से एक है, और चंद जो यंग की संघर्ष भरी यात्रा हमें यह सिखाती है कि मुश्किलों के बावजूद कभी हार नहीं माननी चाहिए। उनका जीवन यह दर्शाता है कि मेहनत, समर्पण और दृढ़ संकल्प से कुछ भी हासिल किया जा सकता है।
Disclaimer
यह लेख एक प्रेरणादायक कहानी पर आधारित है जो एक सच्चे संघर्ष और सफलता की मिसाल पेश करता है। हालांकि, इसमें दी गई जानकारी और घटनाओं का उद्देश्य केवल पाठकों को प्रेरित करना है। लेख में बताए गए तथ्यों, तारीखों और घटनाओं को संदर्भ के रूप में प्रस्तुत किया गया है, और यह वास्तविक घटनाओं के आधार पर है। किसी भी व्यक्ति, कंपनी, या घटना से संबंधित कोई भी जानकारी किसी भी रूप में व्यक्तिगत या व्यावसायिक रूप से गलत साबित नहीं हो सकती है। पाठकों से अनुरोध है कि वे इस लेख को केवल जानकारी और प्रेरणा के उद्देश्य से लें।