भारत और पाकिस्तान दोनों ने लगभग एक ही समय में अपने ऑटोमोबाइल सेक्टर की शुरुआत की थी, लेकिन आज दोनों देशों का सफर बिल्कुल अलग दिशा में चला गया है। जहां भारत दुनिया के टॉप 6 कार मैन्युफैक्चरिंग देशों में शामिल हो चुका है, वहीं पाकिस्तान अपने लोकल मार्केट को बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रहा है। आखिर ऐसा क्यों हुआ? क्या सरकार की नीतियां जिम्मेदार हैं, उपभोक्ताओं का व्यवहार अलग है, या फिर ग्लोबल प्रतिस्पर्धा का दबाव दोनों देशों पर अलग-अलग तरीके से पड़ा? आइए जानते हैं इस पूरे बदलाव की कहानी।
भारत का ऑटोमोबाइल सफर: छोटे कदम, बड़ा बदलाव
भारत में ऑटोमोबाइल सेक्टर की शुरुआत 1940 के दशक में हुई, जब हिंदुस्तान मोटर्स ने Ambassador कार लॉन्च की। यह कार लंबे समय तक भारतीय बाजार की पहचान बनी रही। लेकिन असली बदलाव तब आया जब 1980 के दशक में मारुति सुजुकी ने किफायती और फ्यूल-एफिशिएंट कारें लॉन्च कीं, जिससे भारतीय मध्यम वर्ग का कार खरीदने का सपना पूरा हुआ।
इसके बाद 1991 में आर्थिक उदारीकरण (Economic Liberalization) के तहत विदेशी कंपनियों को भारत में निवेश करने का मौका मिला। इसके चलते कई विदेशी कंपनियों ने भारत में अपने मैन्युफैक्चरिंग प्लांट्स लगाए, जिससे लोकल प्रोडक्शन को मजबूती मिली और इंडस्ट्री में रोजगार बढ़ा।
पाकिस्तान का ऑटोमोबाइल सफर: चुनौतियों से भरा रास्ता
पाकिस्तान में भी ऑटोमोबाइल सेक्टर की शुरुआत भारत की तरह ही हुई, लेकिन वहां स्थानीय उत्पादन (Local Manufacturing) पर ध्यान देने के बजाय, इम्पोर्टेड कार्स और कंप्लीट नॉक डाउन (CKD) किट्स पर अधिक निर्भरता रही। इसके कारण पाकिस्तान की ऑटो इंडस्ट्री ज्यादा विकसित नहीं हो पाई।
पाकिस्तान में अभी भी कई कार कंपनियां सिर्फ असेंबलिंग करती हैं, जबकि भारत ने अपनी पॉलिसीज के कारण ऑटोमोबाइल हब बनने की ओर कदम बढ़ाया। 1980 से ही भारत ने ऑटो सेक्टर को प्राथमिकता दी और इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलप किया, जबकि पाकिस्तान में इस सेक्टर को ज्यादा महत्व नहीं दिया गया।
उत्पादन और निर्यात में बड़ा अंतर
भारत आज एशिया का ऑटोमोटिव हब बन चुका है। 2023 में भारत में 4.4 मिलियन व्हीकल्स का उत्पादन हुआ, जिससे यह चीन, अमेरिका और जापान के बाद दुनिया का चौथा सबसे बड़ा ऑटो प्रोडक्शन सेंटर बन गया।
भारत में चेन्नई, पुणे, गुजरात और हरियाणा जैसे प्रमुख मैन्युफैक्चरिंग हब हैं, जहां से वाहनों का उत्पादन कर न केवल लोकल मार्केट को पूरा किया जाता है, बल्कि दक्षिण-पूर्व एशिया, यूरोप और अफ्रीका जैसे अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कारें निर्यात की जाती हैं।
इसके विपरीत पाकिस्तान का वार्षिक वाहन उत्पादन मात्र 0.2 मिलियन यूनिट्स है, जो भारत की तुलना में बहुत कम है। वहां कारों के दाम अधिक हैं और विकल्प भी सीमित हैं।
भारत में हर बजट के लिए कार, पाकिस्तान में महंगे विकल्प
भारतीय ऑटोमोबाइल बाजार में हर बजट के लिए कार उपलब्ध है। मारुति सुजुकी, टाटा और हुंडई जैसी कंपनियां अफोर्डेबल कार्स बनाती हैं, जो भारतीय उपभोक्ताओं के लिए एक बेहतरीन विकल्प हैं।
वहीं, पाकिस्तान में कारों की कीमत काफी ज्यादा है, और विकल्प भी सीमित हैं। पाकिस्तान में अधिकतर लोग Toyota Wagon-R जैसी इम्पोर्टेड कारें खरीदने पर मजबूर होते हैं, क्योंकि लोकल असेंबल की गई कारों की गुणवत्ता और कीमत में संतुलन नहीं है।
सरकार की नीतियां: भारत की सफलता और पाकिस्तान की असफलता
भारत में सरकार ने मेक इन इंडिया जैसी पहल से लोकल मैन्युफैक्चरिंग को प्रमोट किया। इसके अलावा, Production Linked Incentive (PLI) स्कीम से विदेशी कंपनियों को भारत में इन्वेस्ट करने के लिए प्रेरित किया गया, जिससे देश में उत्पादन बढ़ा और इम्पोर्ट पर निर्भरता कम हुई।
ईवी (इलेक्ट्रिक व्हीकल) पॉलिसीज के तहत चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर और सब्सिडीज पर भी ध्यान दिया गया, जिससे इलेक्ट्रिक वाहनों का भविष्य बेहतर हुआ।
वहीं पाकिस्तान में नीतियों की स्थिरता की कमी सबसे बड़ी समस्या रही। 2016 से 2021 तक कई ऑटो पॉलिसीज बदली गईं, लेकिन उनमें स्थायित्व नहीं था। विदेशी निवेशकों को लुभाने के लिए कुछ कदम उठाए गए, लेकिन लॉन्ग टर्म ग्रोथ की कोई ठोस रणनीति नहीं बनाई गई।
इसके अलावा, पाकिस्तान में करेंसी डेप्रिसिएशन, हाई इन्फ्लेशन और भारी इम्पोर्ट ड्यूटीज के कारण कारों की कीमतें बहुत ज्यादा हो गई हैं। इम्पोर्टेड कार्स पर भारी टैक्स और सीकेडी किट्स की ऊंची कीमतें वाहनों को आम जनता की पहुंच से दूर कर रही हैं।
नतीजा: भारत बना ऑटोमोबाइल पावरहाउस, पाकिस्तान अब भी संघर्ष कर रहा
भारत आज ग्लोबल ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में एक मजबूत खिलाड़ी बन चुका है। लोकल मैन्युफैक्चरिंग, मजबूत नीतियां और निर्यात-उन्मुख दृष्टिकोण ने इसे सफलता की ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया है। वहीं, पाकिस्तान अभी भी अपनी ऑटो इंडस्ट्री को स्थिर करने के संघर्ष में लगा हुआ है।
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अंतिम निष्कर्ष
भारत और पाकिस्तान का ऑटोमोबाइल सफर एक ही जगह से शुरू हुआ था, लेकिन भारत ने अपने मजबूत विजन और योजनाओं के कारण इस सेक्टर में लीडरशिप हासिल कर ली, जबकि पाकिस्तान छोटी सोच और अस्थिर नीतियों के कारण पिछड़ता चला गया।
भारत में कारों का इम्पोर्ट भी होता है, एक्सपोर्ट भी होता है, और लोकल मैन्युफैक्चरिंग भी मजबूत है। वहीं, पाकिस्तान में ज्यादातर कारें सिर्फ इम्पोर्ट की जाती हैं और लोकल प्रोडक्शन बहुत सीमित है।
इससे साफ होता है कि एक देश की लीडरशिप और विजन किस तरह उसकी औद्योगिक वृद्धि को आकार देते हैं। भारत का ऑटोमोबाइल सेक्टर मेक इन इंडिया जैसी योजनाओं की सफलता का एक बेहतरीन उदाहरण है, जबकि पाकिस्तान की ऑटो इंडस्ट्री अभी भी अपनी बुनियादी समस्याओं को हल करने में संघर्ष कर रही है।