भारत में कोला ड्रिंक्स की दुनिया सिर्फ एक ठंडा पेय नहीं, बल्कि एक ऐसी जंग रही है जिसमें कॉम्पिटिशन, पॉलिटिक्स, साजिशें और व्यापारिक चालें सब कुछ शामिल रहा। इस कोला वॉर में कई कंपनियां आईं और गईं, सरकार ने नए नियम बनाए और बदले, और कुछ कंपनियों को तो खत्म करने की कोशिशें तक हुईं। लेकिन अंत में, सिर्फ कुछ ही ब्रांड्स इस लड़ाई में टिक पाए। आज जब आप कोका-कोला, पेप्सी या थम्स अप जैसे ब्रांड्स को देखते हैं, तो शायद आपको अंदाजा भी न हो कि इनके पीछे कितनी दिलचस्प कहानी छिपी है। आइए जानते हैं, इस इंडियन कोला वॉर की पूरी कहानी!
भारत में सॉफ्ट ड्रिंक्स की असली शुरुआत
ज्यादातर लोग मानते हैं कि भारत में सॉफ्ट ड्रिंक की शुरुआत तब हुई जब कोका-कोला और पेप्सी आईं, लेकिन असलियत कुछ और ही है। भारत में ऐसे ड्रिंक्स का सफर कोका-कोला के इन्वेंशन से भी पहले शुरू हो चुका था।
साल 1865 में मुंबई के एक केमिस्ट हेनरी रॉजर्स ने “रॉजर्स क्लब सोडा” नाम से एक ड्रिंक लॉन्च किया। यह सोडा जल्दी ही लोकप्रिय हो गया और मुंबई के बार, होटल और रेस्टोरेंट्स में खूब पसंद किया जाने लगा। अगले 28 सालों तक यह सोडा मार्केट का राजा बना रहा, लेकिन फिर कुछ नए प्लेयर्स ने एंट्री ले ली।
जब भारतीय ब्रांड्स ने ली सॉफ्ट ड्रिंक मार्केट में एंट्री
रॉजर्स सोडा की सफलता को देखकर पारसी बिजनेसमैन भी इस इंडस्ट्री में उतरने लगे। 1882 में पोलजी सोडा लॉन्च हुआ, जो मार्केट में तेजी से पॉपुलर हो गया। फिर 1884 में सिर सोडा आया और 1888 में ड्यूक सोडा ने एंट्री ली। इन सभी ने मिलकर भारत में सॉफ्ट ड्रिंक इंडस्ट्री को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया।
इस दौरान, 1886 में अमेरिका में कोका-कोला लॉन्च हो चुकी थी और वहां की जनता इसे काफी पसंद कर रही थी। धीरे-धीरे इसने अमेरिका से बाहर भी अपने पैर जमाने शुरू कर दिए, लेकिन भारत पहुंचने में इसे अभी कई दशक लगने वाले थे।
कोका-कोला की भारत में एंट्री और पार्ले का मुकाबला
आजादी के बाद, भारत में कोका-कोला के लिए एक बड़ा अवसर दिखा। 1950 में कोका-कोला ने दिल्ली में अपना पहला प्लांट लगाया, लेकिन भारतीय बाजार में पहले से ही लोकल ब्रांड्स की भरमार थी। इसी साल भारत की जानी-मानी कंपनी पार्ले ने भी अपने कोला फ्लेवर ड्रिंक “ग्लूको-कोला” के साथ एंट्री ली।
ग्लूको-कोला की पैकेजिंग और ब्रांडिंग कोका-कोला से काफी मिलती-जुलती थी, जिससे कोका-कोला को चिंता होने लगी कि लोग इसे ही उसकी असली प्रोडक्ट समझ न लें। इस विवाद के चलते कोका-कोला ने पार्ले पर केस कर दिया। मामला कोर्ट तक पहुंचा और पार्ले को अपना ब्रांड नेम बदलना पड़ा। इसके बाद उसने “पार्ले-कोला” नाम से अपनी ड्रिंक लॉन्च की, लेकिन यह नाम भी कोका-कोला से काफी मिलता-जुलता था।
लगभग दो साल तक चले इस विवाद के बाद पार्ले ने सॉफ्ट ड्रिंक मार्केट से हटने का फैसला कर लिया, लेकिन उसने कोका-कोला को टक्कर देने का नया तरीका खोज लिया।
पार्ले की नई रणनीति और गोल्ड स्पॉट की एंट्री
1972 में पार्ले ने एक नया ऑरेंज-फ्लेवर ड्रिंक “गोल्ड स्पॉट” लॉन्च किया। यह बच्चों के बीच बेहद लोकप्रिय हुआ, लेकिन युवाओं के बीच यह कोका-कोला को टक्कर नहीं दे सका। फिर भी, अगले कुछ सालों तक भारत में कोका-कोला का दबदबा बना रहा।
1971 में पार्ले ने “लिम्का” लॉन्च किया, जो एक नींबू फ्लेवर की ड्रिंक थी। भारत में गर्मियों के दौरान नींबू पानी की लोकप्रियता को देखते हुए, लिम्का तेजी से मार्केट में छा गई, खासकर महिलाओं के बीच इसे खूब पसंद किया गया।
कोका-कोला को भारत छोड़ने पर क्यों किया गया मजबूर?
1973 तक कोका-कोला भारत में अपने पीक पर थी, लेकिन फिर देश में आर्थिक संकट गहराने लगा। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने “फॉरेन एक्सचेंज रेगुलेशन एक्ट (FERA)” लागू किया, जिसके तहत विदेशी कंपनियों को भारत में अपने बिजनेस का कम से कम 60% शेयर किसी भारतीय कंपनी को देना जरूरी हो गया।
चूंकि कोका-कोला पूरी तरह से विदेशी कंपनी थी और उसने भारत में कई दशकों तक मेहनत कर अपनी जगह बनाई थी, वह अपने शेयर भारतीय कंपनियों को देने के लिए तैयार नहीं थी। इसी बीच, 1975 में देश में इमरजेंसी लग गई, जिससे इस मामले का फैसला कुछ समय के लिए टल गया।
लेकिन जब 1977 में नई सरकार आई, तो उसने लोकल ब्रांड्स को बढ़ावा देने के लिए कोका-कोला पर और भी दबाव बनाया। आखिरकार, कोका-कोला ने भारत से अपना कारोबार समेटने का फैसला किया और देश छोड़ दिया।
पार्ले की वापसी और थम्स अप का जन्म
कोका-कोला के भारत छोड़ने के बाद, सॉफ्ट ड्रिंक मार्केट में पार्ले को एक बड़ा मौका दिखा। उसने 1977 में “थम्स अप” को लॉन्च किया, जो कोला फ्लेवर में भारत की पहली देसी ड्रिंक बनी। थम्स अप ने बाजार में ऐसी धाक जमाई कि यह कोका-कोला की अनुपस्थिति में भारत का नंबर-वन कोला ब्रांड बन गया।
पेप्सी की एंट्री और कोका-कोला की वापसी
1980 के दशक के अंत में, पेप्सी ने भारत में एंट्री ली और जल्द ही बाजार में अपनी पकड़ बना ली। इस बीच, कोका-कोला ने भी महसूस किया कि भारतीय बाजार उसके लिए बेहद महत्वपूर्ण है। 1993 में जब भारत ने अपनी इकोनॉमी को उदार बनाया, तब कोका-कोला ने फिर से भारत में वापसी की।
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नतीजा: भारत में कोला वॉर का आज का दौर
आज भारत में कोका-कोला, पेप्सी और थम्स अप सबसे बड़े सॉफ्ट ड्रिंक ब्रांड्स में गिने जाते हैं। हालांकि, थम्स अप को बाद में कोका-कोला ने खरीद लिया, लेकिन भारतीय बाजार में यह ब्रांड अब भी लोकप्रिय बना हुआ है।
इस तरह, इंडियन कोला वॉर सिर्फ एक बिजनेस कॉम्पिटिशन नहीं था, बल्कि यह ब्रांड्स की लड़ाई, सरकारी नीतियों, और भारतीय उपभोक्ताओं की पसंद-नापसंद का एक दिलचस्प सफर था। अब जब भी आप कोका-कोला, पेप्सी या थम्स अप की बोतल खोलें, तो इस रोमांचक इतिहास को जरूर याद करें! 🚀🥤