गुड़गांव, जो कभी जंगल और सुनसान सड़कों का इलाका हुआ करता था, अब भारत की सबसे एडवांस्ड और महंगी सिटीज़ में से एक है। एक समय ऐसा था जब दिल्ली बॉर्डर पार करने पर लोग डरते थे, लेकिन आज यहां 100 करोड़ रुपये तक के अपार्टमेंट बिकते हैं। इस बदलाव का श्रेय केपी सिंह को जाता है, जिन्होंने गुड़गांव को बदलने का सपना देखा और उसे साकार किया।
केपी सिंह का शुरुआती जीवन
केपी सिंह का जन्म 19 नवंबर 1929 को उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में हुआ। उनके पिता चौधरी मुख्तार सिंह एक वकील थे और मां एक होममेकर। शुरुआती पढ़ाई लोकल मदरसे और फिर डीएवी स्कूल में हुई। कॉलेज की पढ़ाई के दौरान उनके दोस्त भोपाल सिंह ने बिना बताए उनका नाम इंग्लैंड में एयर सर्विस ट्रेनिंग के लिए भेज दिया, और उनका सिलेक्शन भी हो गया। हालांकि, इंग्लैंड जाना उनके परिवार के लिए महंगा था, लेकिन उनके माता-पिता ने फंड जुटाकर उन्हें भेजा।
इंग्लैंड में अनुभव और भारत वापसी
इंग्लैंड में रहते हुए केपी सिंह की मुलाकात जूली नाम की लड़की से हुई, जो एक प्रतिष्ठित परिवार से थीं। जूली के जरिए केपी सिंह ने कई बड़े लोगों से सीखा और जीवन में आगे बढ़े। हालांकि, उनकी मुलाकात ब्रिगेडियर महेंद्र सिंह से हुई, जिन्होंने उन्हें भारतीय सेना में शामिल होने की सलाह दी। उन्होंने सेना की परीक्षा दी, और सफल भी हो गए। आखिरकार, परिस्थितियों ने उन्हें भारत वापस आने पर मजबूर कर दिया, और जूली से उनका रिश्ता टूट गया।
डीएलएफ से जुड़ाव
1959 में, केपी सिंह के ससुर चौधरी रघुवेंद्र सिंह ने उन्हें अपने पारिवारिक व्यवसाय, दिल्ली लैंड एंड फाइनेंस (डीएलएफ), में शामिल होने का प्रस्ताव दिया। यह वही समय था जब दिल्ली में प्राइवेट डेवलपर्स के लिए जमीन खरीदने पर रोक लग गई थी। ऐसे में केपी सिंह ने गुड़गांव को चुना और वहां जमीन खरीदने की प्रक्रिया शुरू की।
गुड़गांव को बदलने की शुरुआत
गुड़गांव के किसानों से जमीन खरीदना आसान नहीं था। केपी सिंह ने उन्हें अच्छे पैसे, उनके बच्चों के लिए स्कूल, और हेल्थकेयर सुविधाएं देने का वादा किया। इसके अलावा, उन्होंने किसानों को समझाया कि बंजर जमीन बेचकर उपजाऊ जमीन खरीद सकते हैं। इस प्रक्रिया में उनके ससुर ने मदद की और किसानों से कर्ज लेकर जमीन खरीदी।
अंतरराष्ट्रीय तकनीकों का इस्तेमाल
साउथ कोरिया और मलेशिया के विकास मॉडल से प्रेरणा लेकर केपी सिंह ने 1981 में सिल्वर ओक्स नामक प्रोजेक्ट शुरू किया। इसके बाद, उन्होंने डीएलएफ सिटी के डेवलपमेंट पर काम किया। धीरे-धीरे, उन्होंने किसानों के पैसे भी लौटाना शुरू किया।
राजीव गांधी से मुलाकात
एक दिन, जब केपी सिंह गुड़गांव के किसानों से बात कर रहे थे, तब उनकी मुलाकात राजीव गांधी से हुई। इस बातचीत ने उनके प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई। अप्रैल 1981 में, उन्हें 39 एकड़ जमीन पर विकास का लाइसेंस मिला।
बंसीलाल से विवाद
डीएलएफ की सफलता से बंसीलाल, जो कभी केपी सिंह के दोस्त थे, नाराज हो गए। एक पार्टी में हुए विवाद के बाद उनकी दोस्ती टूट गई। बंसीलाल ने डीएलएफ के प्रोजेक्ट्स में बाधाएं डालने की कोशिश की, लेकिन केपी सिंह ने धैर्य और दृढ़ता से अपने प्रोजेक्ट्स को पूरा किया।
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आज का गुड़गांव
केपी सिंह की दूरदृष्टि और मेहनत के कारण गुड़गांव आज 8000 से ज्यादा स्टार्टअप्स का घर बन चुका है। यहां देश की सबसे बड़ी कंपनियों के हेडक्वार्टर हैं, और यह शहर भारत के विकास का प्रतीक बन गया है।
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