पार्ले जी: एक भारतीय इमोशन की कहानी

क्या आपने कभी सोचा है कि बिस्किट्स का इतिहास कितना दिलचस्प हो सकता है? खासकर अगर हम बात करें पार्ले जी की, तो यह सिर्फ एक बिस्किट नहीं, बल्कि एक भारतीय इमोशन है। शायद ही कोई ऐसा भारतीय होगा जिसने चाय में पार्ले जी बिस्किट डुबोकर न खाया हो। यह बिस्किट हमारी सुबह की चाय से लेकर ऑफिस के गॉसिप्स तक हर कदम पर हमारे साथ होता है। आइए जानते हैं, कैसे एक गरीब टेलर ने इस ब्रांड को खड़ा किया और भारतीयों के दिलों में राज करने में सफल हुआ।

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पार्ले जी का जन्म: ब्रिटिश राज से लेकर स्वतंत्रता संग्राम तक

पार्ले जी का इतिहास ब्रिटिश राज के समय से शुरू होता है। उस दौर में बिस्किट्स को सिर्फ अंग्रेजों और अमीर भारतीयों के बीच देखा जाता था। बिस्किट्स का वह खास टीन डिब्बा, जिसमें “हंटले एंड पार्स” लिखा होता था, केवल अंग्रेजों के महल में ही पहुंचता था। भारतीय इसे दूर से ही देख कर सोचते थे, “कभी हमारे पास भी यह बिस्किट आएगा?”

लेकिन यह कहानी बदलने वाली थी, और इसके पीछे था एक जर्मन टॉफी मेकर, मोहनलाल दयाल। मोहनलाल दयाल ने 1929 में जर्मनी से टॉफी बनाने की कला सीखी और भारत लौटने के बाद मुंबई के विले पार्ले इलाके में एक फैक्ट्री स्थापित की। यह फैक्ट्री पार्ले का जन्म स्थान बनी और यहीं से बिस्किट्स की कहानी भी शुरू हुई।

पार्ले जी का पहला बिस्किट: सस्ते और अच्छे क्वालिटी का बिस्किट

1939 में पार्ले ने अपना पहला बिस्किट पेश किया – पार्ले ग्लूको। इस बिस्किट का सबसे बड़ा आकर्षण था इसकी सस्ती कीमत और बेहतरीन गुणवत्ता। यह बिस्किट बहुत जल्दी लोगों के बीच पॉपुलर हो गया और सेकंड वर्ल्ड वॉर के दौरान ब्रिटिश और भारतीय दोनों ही आर्मी ने इसका खूब इस्तेमाल किया।

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भारतीयता और स्वदेशी आंदोलन

1947 में भारत स्वतंत्र हुआ, लेकिन इस दौरान गेहूं की कमी के कारण पार्ले को अपने ग्लूको बिस्किट का उत्पादन रोकना पड़ा। हालांकि, कंपनी ने इस समय के दौरान जॉ से बने बिस्किट्स का उत्पादन शुरू किया और उपभोक्ताओं से अपील की कि वे इस अवधि के दौरान जॉ बिस्किट्स का ही सेवन करें।

स्वदेशी आंदोलन के दौर में पार्ले ने अपनी पहचान को और भी मजबूत किया। 1982 में पार्ले ने अपने बिस्किट्स का रीपैकेज किया और उसे “पार्ले जी” नाम दिया। इस नाम के साथ एक नई पहचान बनी, और इसकी ब्रांडिंग ने बच्चों और उनके माता-पिता के दिलों में जगह बना ली।

ब्रांडिंग और लोकप्रियता: पार्ले जी का ऐतिहासिक सफर

पार्ले जी के बिस्किट की पैकेजिंग को नया रूप देने के बाद, कंपनी ने इसे बच्चों के बीच लोकप्रिय बनाने के लिए शक्तिमान जैसे सुपरहीरो का समर्थन लिया। 1998 में शक्तिमान ने पार्ले जी का प्रचार किया, और इसके बाद से पार्ले जी भारत में हर बच्चे की पसंदीदा चीज बन गई।

आज का पार्ले जी: एक विशाल ब्रांड

आज के समय में, पार्ले जी सिर्फ एक बिस्किट नहीं बल्कि एक विशाल ब्रांड है। इसके अलावा कंपनी के पास बिस्किट्स, कैंडीज और नमकीन जैसे कई प्रोडक्ट्स का पोर्टफोलियो है। हालांकि, कई लोग सोचते हैं कि बिसलरी, बेली फ्रूटी और एप्पी फीज भी पार्ले के तहत आते हैं, लेकिन असल में इन कंपनियों का संबंध मोहनलाल दयाल के परिवार से है, जिन्होंने पार्ले से अलग होकर इन ब्रांड्स की शुरुआत की थी।

पार्ले जी की सफलता की कुंजी

पार्ले जी की सफलता का राज सिर्फ उसके स्वाद और गुणवत्ता में नहीं था, बल्कि कंपनी ने हमेशा बाजार की बदलती जरूरतों को समझा और उनपर काम किया। कंपनी ने 1938 में मोनाको बिस्किट्स और 1956 में पार्ले चीज लिंगस जैसे प्रोडक्ट्स लॉन्च किए, जो कि युवा पीढ़ी को आकर्षित करने के लिए थे। इसके साथ ही, पार्ले जी ने समय-समय पर अपनी ब्रांडिंग और मार्केटिंग रणनीतियों को अपडेट किया, जिससे वह आज भी भारतीय बिस्किट बाजार में अग्रणी बना हुआ है।

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निष्कर्ष

पार्ले जी की यात्रा एक उदाहरण है कि कैसे एक छोटे से टेलर ने एक ब्रांड खड़ा किया, जो न केवल भारत में, बल्कि दुनिया भर में प्रसिद्ध हो गया। इसने भारतीयों के दिलों में अपनी खास जगह बनाई और आज भी पार्ले जी भारत का सबसे बड़ा बिस्किट ब्रांड है।

Disclaimer

यह लेख सिर्फ जानकारी देने के उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें दी गई जानकारी ऐतिहासिक तथ्यों, शोध और सार्वजनिक स्रोतों पर आधारित है। हम किसी भी ब्रांड, उत्पाद, या कंपनी के संबंध में किसी प्रकार की दावेदारी या समर्थन नहीं करते हैं। यह लेख किसी भी व्यक्तिगत या व्यावासिक सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। कृपया किसी भी उत्पाद या सेवा का उपयोग करने से पहले उचित शोध करें और आवश्यकतानुसार विशेषज्ञ से सलाह लें।

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