शापूरजी पालोनजी ग्रुप: भारत की छुपी हुई दिग्गज कंस्ट्रक्शन कंपनी

अगर मैं आपसे पूछूं कि भारत की सबसे पुरानी और प्रभावशाली कंस्ट्रक्शन कंपनियों में से एक कौन सी है, तो शायद आप एलएनटी या टाटा प्रोजेक्ट्स का नाम लेंगे। लेकिन क्या आपने कभी शापूरजी पालोनजी ग्रुप का नाम सुना है?

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यह ग्रुप वर्षों से भारत के इंफ्रास्ट्रक्चर और अर्थव्यवस्था को संवारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज, मुंबई सेंट्रल रेलवे स्टेशन, आरबीआई हेडक्वार्टर, ताजमहल होटल, ओबेरॉय होटल, लीलावती हॉस्पिटल, और भारत मंडपम (G20 समिट स्थल) जैसे प्रतिष्ठित प्रोजेक्ट्स इसी ग्रुप की देन हैं।

कंपनी की शुरुआत: एक छोटे प्रोजेक्ट से विश्वस्तरीय पहचान तक

160 साल पहले, यह ग्रुप सिर्फ मुंबई की सड़कों पर फुटपाथ बनाने के छोटे से काम से शुरू हुआ था।

18वीं सदी में ईरान से कुछ पारसी परिवार भारत आए और नए बिजनेस अवसरों की तलाश में जुट गए। उन दिनों भारत ब्रिटिश शासन के अधीन था, और इंडस्ट्रीज़ पर अंग्रेजों का ही कब्जा था। भारतीय व्यापारी सिर्फ ट्रेडिंग तक सीमित थे, लेकिन पलोनजी मिस्त्री नाम के एक युवा पारसी ने कुछ अलग करने का फैसला किया और कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में कदम रखा।

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हालांकि उनके पास ज्यादा पैसा नहीं था और न ही अंग्रेजों से कोई कनेक्शन, लेकिन उन्होंने एक ब्रिटिश बिजनेसमैन के साथ साझेदारी की और मुंबई में फुटपाथ बनाने का पहला प्रोजेक्ट हासिल किया। उनके काम की क्वालिटी देखकर अंग्रेजों ने उन्हें मालाबार हिल के जलाशय (Reservoir) बनाने का बड़ा ठेका दिया, जिससे अगले 100 वर्षों तक वहां पानी की आपूर्ति हुई

धीरे-धीरे उनकी कंपनी बड़ी होती गई, और उनके बेटे शापूरजी मिस्त्री ने भी इस बिजनेस में हाथ बंटाना शुरू किया। इसके बाद कंपनी का नाम बदलकर शापूरजी पालोनजी ग्रुप (SPG) रख दिया गया।

कंपनी का पहला बड़ा ब्रेक: बॉम्बे सेंट्रल रेलवे स्टेशन

1930 में, मुंबई के गवर्नर ने बॉम्बे सेंट्रल रेलवे स्टेशन बनाने का ठेका SPG को दिया। यह उनके लिए खुद को साबित करने का सुनहरा मौका था।

इस प्रोजेक्ट को उन्होंने सिर्फ 21 महीनों में पूरा कर दिया, जो उस समय एक रिकॉर्ड था। इसके बाद SPG सबकी नजरों में आ गया, और यह साबित हो गया कि एक भारतीय कंपनी भी बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स को सफलतापूर्वक पूरा कर सकती है

टाटा ग्रुप से मजबूत रिश्ता

1940 के दशक में, जब भारत में ब्रिटिश कंपनियां अपना बिजनेस समेटने लगीं, तब SPG ने एक ब्रिटिश फाइनेंस कंपनी F. Disa & Co. का अधिग्रहण कर लिया। यह वही कंपनी थी जिसने टाटा स्टील और ACC सीमेंट के लिए फंडिंग का इंतजाम किया था।

SPG के इस कदम ने उन्हें टाटा ग्रुप के करीब ला दिया। 1947 में, भारत की आजादी के बाद कंपनी की बागडोर पलोनजी मिस्त्री के हाथों में आ गई। 1960 में, SPG ने भारतीय सिनेमा के सबसे महंगे प्रोजेक्ट “मुगल-ए-आजम” में 5 करोड़ रुपये का इन्वेस्टमेंट किया, जिससे उनका प्रभाव और बढ़ गया।

धीरे-धीरे SPG टाटा ग्रुप के लिए सबसे भरोसेमंद पार्टनर बन गया। यहां तक कि टाटा स्टील प्लांट (जमशेदपुर) और टाटा मोटर्स फैक्ट्री (पुणे) को स्थापित करने में SPG की अहम भूमिका रही।

इंटरनेशनल सफलता: भारत से दुनिया तक

1970 में SPG को पहला इंटरनेशनल प्रोजेक्ट मिला—ओमान के सुल्तान का महल। इस प्रोजेक्ट की सफलता के बाद, SPG को दुनियाभर से कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट मिलने लगे।

इसके बाद कंपनी ने रियल एस्टेट, वाटर मैनेजमेंट, एनर्जी, शिपिंग, लॉजिस्टिक्स, आईटी और डेटा सेंटर्स जैसे सेक्टर्स में भी विस्तार किया।

आज SPG न सिर्फ भारत, बल्कि दुबई, ओमान, अबू धाबी, और अफ्रीका समेत कई देशों में बड़े प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहा है। हाल ही में इस ग्रुप ने अटल टनल (रोहतांग), चेनाब ब्रिज (दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे ब्रिज), और कर्तव्य पथ (दिल्ली) जैसे बड़े प्रोजेक्ट्स को पूरा किया है।

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टाटा ग्रुप में 18% हिस्सेदारी

SPG सिर्फ कंस्ट्रक्शन तक सीमित नहीं रहा। 1999 तक, SPG ने टाटा संस में अपनी हिस्सेदारी 18% तक बढ़ा ली, जिससे यह टाटा ग्रुप का सबसे बड़ा शेयरहोल्डर बन गया। यही वजह है कि रतन टाटा के बाद टाटा ग्रुप के चेयरमैन सायरस मिस्त्री भी SPG परिवार से ही आए

नतीजा: एक कंस्ट्रक्शन कंपनी से ग्लोबल बिजनेस हब तक

एक छोटे से फुटपाथ कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट से शुरू होकर, आज SPG भारत की सबसे पुरानी और सम्मानित कंपनियों में से एक बन चुकी है

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