कभी सपनों की ऊँचाईयों को छूने वाली कंपनी मोजर बियर देखते ही देखते कंगाल हो गई। हजारों कर्मचारियों ने इस कंपनी में काम कर अपने भविष्य के सुनहरे सपने देखे थे, लेकिन अचानक हुए कंपनी के पतन ने उनकी उम्मीदों को चकनाचूर कर दिया। मोजर बियर कभी ऑप्टिकल स्टोरेज मीडिया जैसे CDs और DVDs की दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी निर्माता कंपनी थी। 2017 में इसका रेवेन्यू 500 करोड़ से अधिक था, लेकिन 2018 में कंपनी दिवालिया हो गई। आखिर ऐसा क्या हुआ कि यह कंपनी इतनी बड़ी असफलता का शिकार हुई?
मोजर बियर की शुरुआत
मोजर बियर की स्थापना दीपक पुरी ने की थी, जिन्होंने लंदन के इंपीरियल कॉलेज से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी। अपने करियर की शुरुआत उन्होंने एक तेल कंपनी में जूनियर एग्जीक्यूटिव के तौर पर की थी, फिर शालीमार पेंट्स में काम किया। 1964 में उन्होंने मेटल इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड नाम की कंपनी शुरू की, जो मेटल वायर और एल्युमिनियम फर्नीचर बनाती थी। हालांकि, यूनियन प्रोटेस्ट और आंतरिक समस्याओं के कारण उन्हें यह कंपनी बंद करनी पड़ी।
इसके बाद, उन्होंने दिल्ली में फ्लॉपी डिस्क के व्यवसाय में कदम रखा। 1983 में, उन्होंने स्विट्जरलैंड की मोजर बियर स्विमिंग वर्ल्ड और जापान की मरचंद कॉरपोरेशन के साथ साझेदारी कर फ्लॉपी डिस्क निर्माण शुरू किया। शुरुआती सफलता के बाद यह साझेदारी समाप्त हो गई और मोजर बियर एक स्वतंत्र कंपनी बन गई। 1988 में नोएडा में एक बड़ा मैन्युफैक्चरिंग प्लांट स्थापित किया गया, जिससे यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्पाद निर्यात करने लगी।
तेजी से बढ़ता व्यापार
1993 में कंपनी ने 3.5 इंच की छोटी फ्लॉपी डिस्क लॉन्च की, जिसने जबरदस्त सफलता पाई। 1996-97 तक मोजर बियर ने 200 करोड़ रुपये का निवेश कर अपनी उत्पादन क्षमता को बढ़ाया और दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी फ्लॉपी डिस्क निर्माता बन गई। 90 के दशक में भारत में फ्लॉपी डिस्क की कम मांग थी, इसलिए कंपनी अपने 85% से अधिक उत्पादों का निर्यात करती थी।
जल्द ही, मार्केट में CDs और DVDs का दौर शुरू हुआ। दीपक पुरी को यह अंदाजा हो गया कि फ्लॉपी डिस्क का समय खत्म होने वाला है। 1999 में उन्होंने CDs और DVDs के निर्माण में कदम रखा और इस क्षेत्र में जबरदस्त सफलता हासिल की। कंपनी ने इंटरनेशनल फाइनेंस कॉरपोरेशन और जीजी इलेक्ट्रा लिमिटेड जैसी कंपनियों से फंडिंग हासिल कर बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू किया। कुछ ही वर्षों में, मोजर बियर ऑप्टिकल मीडिया की सबसे बड़ी निर्माता कंपनी बन गई।
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कंपनी के पतन के कारण
2004 तक मोजर बियर का रेवेन्यू 24 मिलियन डॉलर से बढ़कर 364 मिलियन डॉलर तक पहुंच गया। लेकिन इसके बाद कंपनी को भारी झटके लगने लगे:
- मार्केट में ओवर सप्लाई – ऑप्टिकल डिस्क की अधिक आपूर्ति होने के कारण कीमतें गिरने लगीं, जिससे कंपनी को घाटा होने लगा।
- रॉ मैटेरियल की बढ़ती कीमतें – पॉलीकार्बोनेट जैसी सामग्रियों के दाम बढ़ने से उत्पादन लागत अधिक हो गई और मुनाफा घट गया।
- बढ़ता कॉम्पिटिशन – ताइवान और चीन की कंपनियों ने सस्ते दामों पर CDs और DVDs बेचना शुरू कर दिया, जिससे मोजर बियर की बिक्री प्रभावित हुई।
- डिजिटल स्टोरेज टेक्नोलॉजी का आगमन – हार्ड ड्राइव, पेन ड्राइव और क्लाउड स्टोरेज जैसी नई तकनीकों ने ऑप्टिकल डिस्क की मांग को समाप्त कर दिया।
2009 के बाद कंपनी ने खुद को बचाने के लिए सौर ऊर्जा (Solar Power) और अन्य क्षेत्रों में कदम रखने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हो पाई। अंततः, 2018 में मोजर बियर को बैंकक्रप्ट घोषित कर दिया गया और हजारों कर्मचारी बेरोजगार हो गए।
निष्कर्ष
मोजर बियर की कहानी यह दर्शाती है कि यदि कोई कंपनी समय के साथ बदलाव नहीं करती और नई तकनीकों को नहीं अपनाती, तो उसका पतन निश्चित है। मोजर बियर ने जिस तेजी से सफलता हासिल की, उतनी ही तेजी से वह बाजार से गायब भी हो गई। इस घटना ने हजारों कर्मचारियों की जिंदगी को प्रभावित किया और एक समय की दिग्गज कंपनी इतिहास बन गई।