जब 2007 में एप्पल ने पहला iPhone लॉन्च किया, तो इसने पूरे स्मार्टफोन इंडस्ट्री को बदलकर रख दिया। इस क्रांति का श्रेय जिस व्यक्ति को जाता है, वह कोई और नहीं बल्कि स्टीव जॉब्स थे। उन्हें एक बेहतरीन बिजनेस लीडर और मॉडर्न युग के जीनियस के रूप में जाना जाता है। लेकिन उनकी असाधारण प्रतिभा और जुनून ने ही शायद उनके जीवन को छोटा कर दिया। आज हम उनकी पूरी जिंदगी की कहानी जानेंगे – एक ऐसा सफर, जो संघर्ष, नवाचार और सफलता से भरा हुआ था।
स्टीव जॉब्स का जन्म और शुरुआती जीवन
स्टीव जॉब्स का जन्म 24 फरवरी 1955 को अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में हुआ था। आपको जानकर हैरानी होगी कि उनका असली नाम अब्दुल लतीफ जंडाली था। उनके पिता अब्दुल फतह जंडाली सीरिया से थे, जबकि उनकी मां जोन कैरोल शिबल एक जर्मन-अमेरिकन महिला थीं।
उनका जन्म एक अनवांटेड बच्चे के रूप में हुआ था क्योंकि उनके माता-पिता शादी से पहले ही उन्हें जन्म देने के लिए मजबूर थे। जब अबॉर्शन कराना संभव नहीं था, तो उन्होंने बच्चे को गोद देने का फैसला किया। इस तरह, पॉल और क्लारा जॉब्स नामक एक दंपति ने स्टीव को अपनाया और उनका नाम स्टीव पॉल जॉब्स रखा।
बचपन और शिक्षा
स्टीव का बचपन माउंटेन व्यू, कैलिफोर्निया में बीता, जो उस समय टेक्नोलॉजी का हब बन रहा था। उन्हें बचपन से ही इलेक्ट्रॉनिक्स में गहरी रुचि थी, लेकिन पढ़ाई में उनका ज्यादा मन नहीं लगता था। स्कूल में भी उन्हें अक्सर परेशान किया जाता था।
बाद में, उन्होंने ओरेगॉन के रीड कॉलेज में दाखिला लिया, लेकिन सिर्फ एक सेमेस्टर बाद ही कॉलेज छोड़ दिया। उन्होंने महसूस किया कि पारंपरिक शिक्षा उनके लिए नहीं है। हालांकि, उन्होंने वहां कैलीग्राफी (Calligraphy) की क्लास ली, जिससे बाद में मैक कंप्यूटर में खूबसूरत फॉन्ट्स जोड़ने में मदद मिली।
इस दौरान, वह दोस्तों के हॉस्टल में फर्श पर सोते थे और खाने के लिए कोका-कोला की बोतलें रीसाइकिल कर पैसे कमाते थे। हर संडे को फ्री में भोजन के लिए हरे कृष्णा मंदिर जाया करते थे।
टेक्नोलॉजी से पहला परिचय और एप्पल की शुरुआत
स्टीव जॉब्स की मुलाकात एक इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर स्टीव वोज़्नियाक से हुई। दोनों की दोस्ती टेक्नोलॉजी के प्रति उनके जुनून पर आधारित थी।
1974 में, जॉब्स ने वीडियो गेम कंपनी अटारी में टेक्नीशियन की नौकरी की। वहीं, उन्होंने भारत आने का फैसला किया और स्पिरिचुएलिटी को समझने के लिए भारत में कुछ समय बिताया। भारत की यह यात्रा उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट बनी, जिससे उन्होंने सीखा कि इंट्यूशन (आंतरिक समझ) किसी भी चीज से ज्यादा महत्वपूर्ण होता है।
1976 में, स्टीव जॉब्स, स्टीव वोज़्नियाक और रोनाल्ड वेन ने मिलकर एप्पल कंपनी की नींव रखी। उनका पहला ऑफिस स्टीव जॉब्स के गैराज में था। यहीं से उन्होंने पहला कंप्यूटर Apple I बनाया। यह कंप्यूटर आज के मॉडर्न कंप्यूटर्स से काफी अलग था।
जल्द ही, Apple II लॉन्च हुआ, जिसने टेक्नोलॉजी की दुनिया में तहलका मचा दिया। इस कंप्यूटर की सफलता के बाद, एप्पल तेजी से आगे बढ़ने लगा और करोड़ों डॉलर की कंपनी बन गई।
सफलता और संघर्ष: एप्पल से बाहर होना
1984 में, स्टीव जॉब्स ने मैकिंटोश कंप्यूटर लॉन्च किया, जो अपने समय से आगे था, लेकिन यह उम्मीद के मुताबिक सफल नहीं हुआ। एप्पल के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स ने इसके लिए जॉब्स को जिम्मेदार ठहराया और उन्हें कंपनी से निकाल दिया गया।
लेकिन स्टीव ने हार नहीं मानी। उन्होंने 1985 में NeXT नामक एक नई टेक कंपनी शुरू की और Pixar Studios खरीदा। Pixar ने Toy Story जैसी हिट एनीमेटेड फिल्में बनाई, जिसने उन्हें हॉलीवुड में भी पहचान दिलाई।
एप्पल में वापसी और iPhone का जन्म
1997 में, एप्पल ने स्टीव जॉब्स की कंपनी NeXT को खरीद लिया और जॉब्स को एप्पल में वापस बुलाया गया। उन्होंने CEO बनने के बाद एप्पल को दिवालिया होने से बचाया और iMac, iPod, MacBook और 2007 में iPhone लॉन्च किया।
iPhone ने पूरी स्मार्टफोन इंडस्ट्री को बदलकर रख दिया और आज एप्पल दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक है।
अंतिम समय और विरासत
स्टीव जॉब्स को 2003 में पैंक्रियाटिक कैंसर (Pancreatic Cancer) हुआ। उन्होंने कई सालों तक इलाज करवाया, लेकिन 5 अक्टूबर 2011 को 56 साल की उम्र में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया।
आज भी, स्टीव जॉब्स को उनकी इनोवेशन, विजन और अद्वितीय सोच के लिए याद किया जाता है। उन्होंने यह साबित कर दिया कि दुनिया को बदलने के लिए सिर्फ एक आइडिया और दृढ़ निश्चय की जरूरत होती है।
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निष्कर्ष
स्टीव जॉब्स की कहानी हमें सिखाती है कि असफलता कभी अंतिम नहीं होती, जब तक हम हार नहीं मानते। उन्होंने न सिर्फ टेक्नोलॉजी को बदला, बल्कि दुनिया को यह सिखाया कि इंट्यूशन, जुनून और कड़ी मेहनत से कुछ भी संभव है। उनका सफर प्रेरणादायक है और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मिसाल बना रहेगा।