बिसलेरी: भारत के बॉटल्ड वाटर मार्केट का बेताज बादशाह, अब बिकने को तैयार!

जब कोई ब्रांड इतना सफल हो जाए कि लोग उसे कॉपी करने लगें, तो समझ लीजिए कि वह ब्रांड एक पहचान बन चुका है। बिसलेरी, भारत का सबसे लोकप्रिय और भरोसेमंद बॉटल्ड वाटर ब्रांड, इसकी एक मिसाल है। बाजार में मिलने वाली हर पानी की बोतल बिसलेरी नहीं होती, और यही इसकी खासियत है। पर आज यह आइकॉनिक ब्रांड बिकने के लिए तैयार खड़ा है। और हैरानी की बात यह है कि इसके चेयरमैन रमेश चौहान इसे सिर्फ टाटा को बेचना चाहते हैं। आखिर क्यों? आइए, इसकी पूरी कहानी समझते हैं।

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now

बिसलेरी का इतिहास: एक इटालियन कंपनी से भारतीय ब्रांड बनने तक का सफर

बिसलेरी की शुरुआत 1965 में एक इटालियन कंपनी के रूप में हुई थी। इसे फेलिस बिसलेरी ने स्थापित किया। इसी साल बिसलेरी ने भारत में कदम रखा, जहां इंडियन बिजनेसमैन खुशरू संतक और इटालियन डॉक्टर ससार रोसी ने भारत को बॉटल्ड वाटर से परिचित कराया। शुरुआत में बिसलेरी ने दो प्रोडक्ट लॉन्च किए—बिसलेरी सोडा और बिसलेरी वाटर। लेकिन ये प्रोडक्ट्स सिर्फ बड़े होटलों में ही मिलते थे।

उस समय आम भारतीयों के लिए पानी खरीदकर पीना बेफिजूल खर्च लगता था। इसके चलते कंपनी का कारोबार नहीं चला, और 1969 में पार्ले ग्रुप के चेयरमैन रमेश चौहान ने इसे मात्र 4 लाख रुपये में खरीद लिया। उनका मकसद बिसलेरी को एक बड़ा ब्रांड बनाना था।


रमेश चौहान और बिसलेरी की नई पहचान

1970 के दशक में बिसलेरी के साथ रमेश चौहान ने भारतीय बाजार में नया मुकाम हासिल किया। 1990 में जब कोका-कोला वापस भारतीय बाजार में लौटा, तो रमेश चौहान ने अपने सॉफ्ट ड्रिंक ब्रांड थम्स अप और गोल्ड स्पॉट को 400 करोड़ रुपये में बेच दिया। इस डील के साथ एक नियम था कि बिसलेरी 15 साल तक कार्बोनेटेड ड्रिंक्स का कारोबार नहीं कर सकता।

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now

यहीं से रमेश चौहान ने पूरी तरह से बॉटल्ड वाटर पर ध्यान दिया। उन्होंने बिसलेरी को “शुद्ध और सुरक्षित पानी” के रूप में प्रमोट किया। शुरुआती दिनों में ट्रांसपोर्टेशन के चलते काफी चुनौतियां आईं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। आज बिसलेरी के पास 5000 ट्रक, 3000 डिस्ट्रीब्यूटर, और 135 प्लांट्स का नेटवर्क है।


क्यों बिक रहा है बिसलेरी?

बिसलेरी जितना सफल है, उतना ही इसका बिकने का फैसला चौंकाने वाला है। 82 साल के रमेश चौहान अब अपनी सेहत के चलते अपने कारोबार को समय नहीं दे पा रहे हैं। उनकी इकलौती बेटी जयंती चौहान इस बिजनेस को आगे बढ़ाने में दिलचस्पी नहीं रखतीं।

जयंती चौहान ने बिसलेरी के वाइस चेयरमैन के तौर पर काम किया और कंपनी को कई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। हालांकि, अब वह अपने फैशन डिजाइनिंग और स्टाइलिंग पैशन को फॉलो करना चाहती हैं।


टाटा को ही क्यों बेचना चाहते हैं चौहान?

रमेश चौहान ने बिसलेरी को बहुत मेहनत और प्यार से खड़ा किया है। वह इसे ऐसे हाथों में सौंपना चाहते हैं, जो इस ब्रांड की विरासत को आगे ले जा सके। टाटा उनके लिए सबसे भरोसेमंद विकल्प है।

टाटा ग्रुप की टाटा कंज्यूमर प्रोडक्ट्स लिमिटेड बिसलेरी को खरीदने के लिए 6000-7000 करोड़ रुपये की डील कर रही है। इससे पहले रिलायंस जैसी कंपनियां भी इसे खरीदने की कोशिश कर चुकी थीं, लेकिन चौहान ने इन प्रस्तावों को ठुकरा दिया।


क्या बदलेगा इस डील के बाद?

अगर टाटा बिसलेरी को खरीदता है, तो यह बॉटल्ड वाटर इंडस्ट्री का सबसे बड़ा अधिग्रहण होगा। टाटा पहले से ही उपभोक्ता उत्पादों में बड़ा नाम है। यह डील टाटा को बॉटल्ड वाटर मार्केट में भी शीर्ष पर पहुंचा सकती है।

इसे भी पढ़ें:- जोमैटो और स्विग्गी: हर दिन लाखों ऑर्डर डिलीवर करने के बावजूद घाटे में क्यों हैं?


बिसलेरी: एक विरासत

1969 में 4 लाख रुपये में खरीदी गई बिसलेरी की कीमत आज 7000 करोड़ रुपये है। इसका पूरा श्रेय रमेश चौहान को जाता है। उन्होंने न सिर्फ भारत में बॉटल्ड वाटर इंडस्ट्री को स्थापित किया, बल्कि इसे एक ब्रांड भी बनाया।

अब यह देखना दिलचस्प होगा कि टाटा इस ब्रांड को नई ऊंचाइयों पर कैसे ले जाता है। रमेश चौहान का यह कदम भारतीय बिजनेस जगत में हमेशा याद किया जाएगा।

डिस्क्लेमर:

इस लेख में दी गई जानकारी विभिन्न स्रोतों पर आधारित है और केवल सूचनात्मक उद्देश्य से प्रस्तुत की गई है। लेख में दी गई सामग्री में किसी भी कंपनी, ब्रांड या व्यक्ति से जुड़े तथ्यों का समर्थन या प्रचार करने का उद्देश्य नहीं है। पाठकों से अनुरोध है कि किसी भी निर्णय से पहले आधिकारिक स्रोतों और विश्वसनीय जानकारी का अवलोकन करें।

Leave a Comment