टाटा समूह ने जिस तरह से एक के बाद एक सफल अंतरराष्ट्रीय अधिग्रहण किए हैं, उसकी वजह से आज भारत की अंतरराष्ट्रीय मार्केट में काफी मजबूत छवि बन चुकी है। साल 2000 में टाटा ने सबसे पहले इंग्लैंड की कंपनी टेटली का अधिग्रहण किया। 2006 में यूएस की T.O. Clock कॉफी को खरीदी और 2008 में जार लैंड रोवर को भी अपने नाम कर लिया। अब हो सकता है कि आप में से कई लोगों को इन अधिग्रहणों के बारे में पहले से ही पता हो, लेकिन क्या आप जानते हैं कि Lakmé, जो आज हिंदुस्तान यूनिलीवर के अधीन है, वह एक समय टाटा का ही ब्रांड हुआ करती थी?
Lakmé का जन्म
हमारी कहानी की शुरुआत होती है साल 1947 से, जब देश ने आजादी का स्वाद चखा था। पर बात जब स्किनकेयर उत्पादों की आती है, तो हम अभी भी विदेशी कंपनियों पर ही निर्भर थे। इन विदेशी कॉस्मेटिक उत्पादों को खरीदने के लिए भारत के अमीर लोग और खासकर महिलाएं पानी की तरह पैसे बहाती थीं, और यही कदम भारत की अर्थव्यवस्था को कमजोर कर रहा था। इसके पीछे का कारण बस यही था कि भारत के पास अपना खुद का कोई कॉस्मेटिक ब्रांड नहीं था। पंडित जवाहरलाल नेहरू का ध्यान इस मुद्दे पर गया, और उन्होंने समझा कि देश को इस संकट से बाहर निकालने वाला सिर्फ एक इंसान हो सकता है, और वह थे जहांगीर रतन जी दादा बाय टाटा (JRD Tata)।
जेआरडी टाटा का कदम
नेहरू जी ने तुरंत जेआरडी टाटा को फोन किया और उनके साथ एक मीटिंग फिक्स की। इस मीटिंग में नेहरू जी ने पूरी समस्या को विस्तार से बताया और भारत में एक कॉस्मेटिक ब्रांड शुरू करने की गुजारिश की, जिससे देश का पैसा देश में ही रह जाए और विदेशी मुद्रा की बेवजह खर्ची भी रुक सके। जेआरडी टाटा को नेहरू जी का यह आईडिया बहुत पसंद आया, और उन्होंने अपनी टीम के साथ मिलकर एक बिजनेस प्लान बनाया। इस प्लान के तहत, टाटा ने Lakmé ब्रांड की शुरुआत की, जिसमें भारतीय स्किन टाइप और मौसम को ध्यान में रखते हुए प्रोडक्ट बनाए गए थे।
Lakmé का नामकरण
तभी जेआरडी टाटा की टीम एक दिन फ्रेंच ड्रामा ओपेरा देखने गई। यह ओपेरा भारतीय लड़की की जीवन पर आधारित था, जिसे एक ब्रिटिश ऑफिसर से प्यार हो जाता है। ड्रामा में लड़के का नाम लक्ष्मी था, लेकिन फ्रेंच में इसे Lakmé के नाम से अनुवादित किया गया था। टीम को यह नाम काफी पसंद आया, और फिर जेआरडी टाटा ने इस नाम को अपना ब्रांड नाम बना लिया।
Lakmé का विकास और सफलता
1952 में Lakmé को टाटा ऑयल मिल्स की सब्सिडियरी कंपनी के रूप में लॉन्च किया गया। इसके बाद यह ब्रांड भारतीय महिलाओं के बीच काफी लोकप्रिय हो गया, और जल्द ही इसने भारतीय कॉस्मेटिक बाजार में एक मजबूत पकड़ बना ली। लेकिन किसी भी ब्रांड को लंबे समय तक टिके रहने के लिए और उसे सफल बनाए रखने के लिए गहरी विशेषज्ञता जरूरी होती है। इसके लिए टाटा ने Simone Tata को Lakmé का मैनेजिंग डायरेक्टर बना दिया। उनका अनुभव और सूझबूझ ने Lakmé को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया।
Lakmé पर एक्साइज ड्यूटी और समस्या
80 के दशक में भारतीय सरकार ने कॉस्मेटिक उत्पादों पर 100% एक्साइज ड्यूटी लगा दी, जिसके कारण Lakmé को भारी नुकसान हुआ। इस समस्या का समाधान करने के लिए, Simone Tata ने भारत के वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह से मुलाकात की और इस ड्यूटी के खिलाफ महिलाओं के हस्ताक्षर इकट्ठे किए। इसके बाद सरकार ने एक्साइज ड्यूटी को कम किया। Lakmé ने अपना पहला ब्रांडेड ब्यूटी सैलून खोला, और 1982 तक Simone Tata चेयरमैन के पद पर बनी रही।
Lakmé का अधिग्रहण
आज Lakmé के पास 300 से भी ज्यादा प्रोडक्ट्स हैं और यह 70 से ज्यादा देशों में उपलब्ध है। लेकिन अफसोस, अब यह ब्रांड टाटा समूह के पास नहीं है। टाटा ने Lakmé को 1996 में हिंदुस्तान यूनिलीवर को 50% शेयर बेचे और फिर 1998 में बचे हुए 50% शेयर भी बेच दिए, और इस तरह टाटा समूह ने Lakmé से बाहर निकलकर इसे हिंदुस्तान यूनिलीवर के हवाले कर दिया।
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टाटा का यह फैसला
अगर आप टाटा के इस फैसले पर शंका कर रहे हैं, तो आपको जानकर हैरानी होगी कि 1998 में Lakmé का नेट प्रॉफिट करीब ₹9999 करोड़ था, लेकिन अगले कुछ सालों में यह घटकर ₹1,000 करोड़ तक पहुंच गया था। आज टाटा समूह ने इस पैसे का इस्तेमाल करके एक रिटेल कंपनी शुरू की, जिसका नाम Trent Limited है, और इसका ऑपरेशन Westside और Jabong जैसे बड़े नामों के साथ किया जाता है।
निष्कर्ष
तो दोस्तों, यह था Lakmé ब्रांड का टाटा समूह के साथ जुड़ाव और इसका बाद में हिंदुस्तान यूनिलीवर को बेचे जाने का पूरा इतिहास। टाटा का यह कदम दिखाता है कि एक बिजनेसमैन को अपने बिजनेस से इतना भी दिल नहीं लगाना चाहिए कि वह उसे घाटे में डाल दे।