टीवीएस की कहानी: संघर्ष, जुनून और सफलता की मिसाल

टीवीएस मोटर कंपनी की कहानी एक प्रेरणा है, खासतौर पर उन लोगों के लिए जो मुश्किलों के बावजूद अपने सपनों को पूरा करने का हौसला रखते हैं। भारत में जहां बाइक सिर्फ शौक नहीं बल्कि एक जरूरत है, वहीं टीवीएस ने मिडिल क्लास परिवारों की उम्मीदों को समझा और उनकी जिंदगी आसान बनाने का बीड़ा उठाया। आइए जानते हैं इस सफर की शुरुआत कैसे हुई और यह कंपनी कैसे इतनी बड़ी सफलता हासिल कर पाई।

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शुरुआत: एक मामूली क्लर्क का बड़ा सपना

टीवी सुंदरम अयंगर, जिन्होंने टीवीएस की नींव रखी, एक साधारण क्लर्क की नौकरी करते थे। वकालत की पढ़ाई के बाद उन्होंने लॉयर के रूप में करियर शुरू किया, लेकिन उनका सपना हमेशा से बड़ा था। चेन्नई में मशहूर लॉयर अर्ली नॉर्टन की एक स्पीच ने उन्हें गहराई से प्रभावित किया। यह स्पीच एंटरप्रेन्योरशिप पर थी, जिसने सुंदरम अयंगर को व्यापार शुरू करने के लिए प्रेरित किया।

उन्होंने लकड़ी के व्यापार से शुरुआत की, लेकिन अनुभव की कमी के चलते असफल हो गए। इसके बाद उन्होंने इंडियन रेलवे और बैंक ऑफ मद्रास में नौकरी की, लेकिन वहां भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी। अपने पिता के निधन और प्रमोशन में धोखाधड़ी के चलते उन्होंने बैंक की नौकरी छोड़ दी और एक बार फिर लकड़ी के कारोबार में लौटने का फैसला किया।


दूसरे प्रयास में सफलता

दूसरी बार, सुंदरम अयंगर ने अपने अनुभव और सीखे हुए सबक का इस्तेमाल किया। उन्होंने बिजनेस के हर पहलू को समझा और अपनी पूरी मेहनत झोंक दी। उनकी मेहनत रंग लाई, और कुछ ही सालों में उन्होंने टिंबर व्यापार में बड़ा नाम कमा लिया। लोग उन्हें “टिंबर मर्चेंट सुंदरम अयंगर” के नाम से जानने लगे।

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बस सर्विस की शुरुआत

लकड़ी के व्यापार से मुनाफा कमाने के बाद सुंदरम अयंगर ने मदुरै के ग्रामीण इलाकों में परिवहन सुविधा उपलब्ध कराने का सपना देखा। 1911 में उन्होंने टीवी सुंदरम अयंगर एंड संस की स्थापना की और मदुरै से देवकोट्टई के बीच पहली बस सेवा शुरू की। उनकी बस सेवा अपनी पंक्चुअलिटी के लिए मशहूर थी।

सुंदरम ने यह सुनिश्चित करने के लिए अनोखे उपाय अपनाए कि बसें समय पर चलें। उन्होंने सड़क पर कील या धातु के टुकड़ों से बचाव के लिए बस के बोनट के नीचे मैग्नेट लगाए। इन छोटी-छोटी तरकीबों से उनका काम न सिर्फ सफल हुआ, बल्कि एक मिसाल बन गया।


दूसरा विश्व युद्ध: एक नया अवसर

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पेट्रोल की भारी कमी ने सुंदरम अयंगर को एक नई संभावना दी। उन्होंने चारकोल गैस से चलने वाले वाहन विकसित किए। इस तकनीक की काफी मांग हुई, और उन्होंने 12,000 गैस यूनिट्स बेचे। इसके बाद, उन्होंने रबर की कमी से निपटने के लिए एक फैक्ट्री खोली और टायर बनाने का काम शुरू किया।


अगली पीढ़ी और कंपनी का विस्तार

1955 में सुंदरम अयंगर के निधन के बाद उनके बेटों ने कंपनी को आगे बढ़ाया। उन्होंने कंपनी का पोर्टफोलियो डायवर्सिफाई किया और ऑटोमोटिव पार्ट्स मैन्युफैक्चरिंग से लेकर टू-व्हीलर्स तक का उत्पादन शुरू किया।

1962 में सुंदरम क्लेटन नाम से ऑटोमोटिव पार्ट्स का निर्माण शुरू हुआ। 1980 में भारत की पहली टू-सीटर मोपेड TVS 50 लॉन्च की गई, जिसने बाजार में तहलका मचा दिया। 1987 में जापानी कंपनी सुजुकी के साथ साझेदारी कर टीवीएस ने मोटरसाइकिल निर्माण में कदम रखा और लगातार नई ऊंचाइयों को छुआ।

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टीवीएस: सफलता की मिसाल

आज टीवीएस भारत की तीसरी सबसे बड़ी और दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी मोटरसाइकिल निर्माता कंपनी है। यह 80 से अधिक देशों में कारोबार कर रही है। सुंदरम अयंगर का सपना, उनकी मेहनत और जुनून ने इसे हकीकत में बदला। उनकी कहानी हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है, जो अपने सपनों को सच करना चाहता है।

तो दोस्तों, टीवीएस की यह कहानी हमें सिखाती है कि मेहनत, लगन और संघर्ष से कोई भी सपना पूरा किया जा सकता है।

Disclaimer

इस लेख में दी गई जानकारी केवल सामान्य ज्ञान और मनोरंजन के लिए है। यह किसी भी तरह से निवेश, व्यापारिक निर्णय, या ब्रांड के समर्थन का सुझाव नहीं देता। पाठकों से अनुरोध है कि कोई भी निर्णय लेने से पहले संबंधित विशेषज्ञों से परामर्श करें।

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