बिरला परिवार: भारत की गौरवशाली पहचान जब भारत के उद्योगपतियों की बात होती है, तो अंबानी और अडानी का नाम सबसे पहले आता है। लेकिन भारत के विकास की असली कहानी "टाटा" और बिरला के बिना अधूरी है।

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शुरुआत: पिलानी गांव से उठी सफलता की कहानी राजस्थान के पिलानी गांव में सेठ शोभाराम बिरला एक छोटे व्यापारी थे। 1840 में उनके घर शिवनारायण बिरला का जन्म हुआ, जिन्होंने अपने पिता के साथ कम उम्र में ही व्यापार में कदम रखा।

कपास व्यापार से मिली पहली सफलता शिवनारायण बिरला ने ब्रिटिश शासन के दौरान कपास की बढ़ती मांग को समझा और इस व्यापार में कदम रखा। उन्होंने अहमदाबाद और बॉम्बे (अब मुंबई) में अपने व्यापार को बढ़ाया।

बलदेवदास बिरला: समाजसेवा और व्यापार का मेल शिवनारायण के उत्तराधिकारी बलदेवदास बिरला ने व्यापार को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाने के साथ-साथ समाजसेवा पर भी ध्यान दिया। उन्होंने कई धर्मशालाएं और मंदिर बनवाए और "राजा बलदेवदास" की उपाधि पाई।

घनश्यामदास बिरला: औद्योगिक क्रांति के जनक घनश्यामदास बिरला ने 1919 में भारत के पहले भारतीय स्वामित्व वाले उद्योग "बिरला जूट मैन्युफैक्चरिंग कंपनी" की शुरुआत की। उन्होंने हिंदुस्तान मोटर्स और यूको बैंक जैसे प्रतिष्ठानों की भी नींव रखी।

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान घनश्यामदास बिरला ने महात्मा गांधी के साथ मिलकर स्वतंत्रता संग्राम में सहयोग किया। 1924 में उन्होंने हिंदुस्तान टाइम्स की शुरुआत की और "हरिजन सेवक संघ" की स्थापना की।

आधुनिक भारत का निर्माण ग्रासिम इंडस्ट्रीज और मैनमेड फाइबर के जरिए बिरला परिवार ने भारतीय उद्योग में क्रांति लाई। उनका हर कदम देश के विकास की

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