साल 2016, अक्टूबर का महीना। भारत में ऑनलाइन शॉपिंग का बूम चल रहा था। जहां Flipkart और Amazon जैसे प्लेटफॉर्म ग्राहकों से भरे हुए थे, वहीं Snapdeal संघर्ष कर रहा था। कभी एक यूनिकॉर्न कंपनी का हिस्सा रहने वाला Snapdeal अब अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा था। इस कंपनी की वैल्यूएशन 6.5 बिलियन डॉलर को छू चुकी थी, लेकिन इसके गिरने की शुरुआत हो चुकी थी।
Snapdeal के ऑफिस जो कभी फोन कॉल्स और हलचल से भरे रहते थे, अब खाली पड़े थे। कंपनी के ज़्यादातर सेलर्स दूसरे प्लेटफॉर्म्स पर शिफ्ट हो चुके थे, और इन्वेस्टर्स ने अपने हाथ पीछे खींच लिए थे। पर आज Snapdeal ने न केवल वापसी की है, बल्कि एक ऐसी मिसाल कायम की है कि इसकी कहानी प्रेरणा बन गई है।
आइए, जानते हैं Snapdeal की इस अद्भुत कहानी के बारे में।
Snapdeal की शुरुआत: एक सपना
Snapdeal की कहानी शुरू होती है साल 2007 में। रोहित बंसल और कुनाल बहल, जो बचपन के दोस्त थे, ने साथ में कुछ बड़ा करने का सपना देखा। रोहित IIT दिल्ली से इंजीनियरिंग कर चुके थे, और कुनाल ने वॉर्टन स्कूल से इंजीनियरिंग और बिजनेस की पढ़ाई की थी।
बिजनेस का जुनून तो था, लेकिन किस क्षेत्र में शुरुआत करनी है, ये तय करना बाकी था। मार्केट रिसर्च से उन्हें पता चला कि भारत के ग्राहकों को ऐसा प्लेटफॉर्म चाहिए जो उनकी शॉपिंग को किफायती बनाए। इसी सोच के साथ उन्होंने मनी सेवर नाम की कंपनी शुरू की।
मनी सेवर से Snapdeal तक का सफर
मनी सेवर का आइडिया लोकल मर्चेंट्स और डिस्काउंट कूपन के इर्द-गिर्द घूमता था। हालांकि, इस मॉडल को ग्राहकों से ठंडा रिस्पॉन्स मिला। उन्होंने देखा कि ऑनलाइन शॉपिंग का चलन तेजी से बढ़ रहा है और ऑफलाइन मार्केट में प्रतिस्पर्धा बहुत अधिक है।
2010 में मनी सेवर को रीब्रांड करके Snapdeal बनाया गया। यह एक ऐसा प्लेटफॉर्म था जो कस्टमर्स और सेलर्स को जोड़ता था। Snapdeal ने शुरुआती दिनों में इलेक्ट्रॉनिक्स और FMCG प्रोडक्ट्स पर फोकस किया।
Snapdeal का ग्रोथ फेज (2012-2014)
Snapdeal ने जल्दी ही फैशन, होम एसेंशियल्स और पर्सनल केयर जैसी कैटेगरीज में विस्तार किया। “दिल की डील” जैसे कैंपेन लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हुए। Snapdeal का नाम बड़े-बड़े इन्वेस्टर्स जैसे सॉफ्टबैंक और ब्लैक रॉक से जुड़ गया।
इस दौरान आमिर खान को ब्रांड एंबेसडर बनाया गया, और Snapdeal ने खुद को एक भरोसेमंद प्लेटफॉर्म के रूप में स्थापित कर लिया।
डाउनफॉल: 2015-2016 का संघर्ष
2015 में Snapdeal ने फ्रीचार्ज का अधिग्रहण किया, लेकिन यह कदम भारी पड़ा। इसके अलावा, मार्केटिंग और ऑपरेशनल खर्चे बढ़ने लगे। Amazon और Flipkart ने आक्रामक रणनीतियों से Snapdeal के मार्केट शेयर को कम कर दिया।
Snapdeal का वैल्यूएशन 6.5 बिलियन डॉलर से गिरकर 1 बिलियन डॉलर से भी कम हो गया। इन्वेस्टर्स ने साथ छोड़ दिया, और Snapdeal एक बुरे दौर में फंस गया।
जबरदस्त वापसी: Snapdeal 2.0
2017 में Snapdeal ने प्रोजेक्ट “Snapdeal 2.0” लॉन्च किया। इस परियोजना का मकसद कंपनी को दुबारा खड़ा करना था। Snapdeal ने अपने ऑपरेशन्स को स्ट्रीमलाइन किया, गैर-ज़रूरी खर्चों में कटौती की और अपने कोर बिजनेस पर ध्यान दिया।
Snapdeal ने अफॉर्डेबल प्रोडक्ट्स पर फोकस किया, खासतौर पर टियर-2 और टियर-3 शहरों के ग्राहकों को ध्यान में रखते हुए। इसका नतीजा ये हुआ कि छोटे शहरों से ऑर्डर्स आने शुरू हो गए।
Snapdeal आज कहां है?
आज Snapdeal ने न केवल अपनी पुरानी जगह वापस पाई है, बल्कि अपनी सर्विसेज को 96% भारतीय पिन कोड्स तक पहुंचा दिया है। इसके मंथली एक्टिव यूजर्स 40 मिलियन तक पहुंच चुके हैं। Snapdeal की स्ट्रेटेजी सस्ती कीमत और क्वालिटी प्रोडक्ट्स पर आधारित है।
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सबक: कभी हार मत मानो
Snapdeal की कहानी हमें सिखाती है कि सही रणनीति और मेहनत से किसी भी चुनौती को पार किया जा सकता है। आज Snapdeal एक बार फिर सफलता की राह पर है और अपने ग्राहकों को अफॉर्डेबल शॉपिंग का बेहतर अनुभव दे रहा है।
क्या आप भी जानना चाहते हैं कि मेहनत और जज्बे से बड़ी उपलब्धियां कैसे हासिल होती हैं? Snapdeal की इस कहानी ने एक बात साबित कर दी है – हार मानना विकल्प नहीं है!
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